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उस खिलाड़ी ने संन्यास ले लिया है जिसने दादा को लॉर्ड्स में जर्सी उतारने का मौका दिया था!

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ट्विटर पर स्क्रॉल करते-करते देखा कि मोहम्मद कैफ ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया है। जी हां, वही मोहम्मद कैफ जिसकी कप्तानी में हमने पहली बार अंडर-19 वर्ल्ड कप जीता था, वही मोहम्मद कैफ जो था तो बल्लेबाज़, लेकिन अपनी बल्लेबाज़ी से ज़्यादा फील्डिंग के लिए जाना जाता था और वही मोहम्मद कैफ जिसने 13 जून 2002 को असंभव को संभव कर दिखाया था।

13 जुलाई 2002, दिन शनिवार, जगह क्रिकेट का मक्का लॉर्ड्स। नेटवेस्ट सीरीज़ का फाइनल मैच, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेला गया 1856वां एक दिवसीय मुकाबला त्रिकोणीय श्रृंखला जिसमें इंडिया और इंग्लैंड के अलावा श्रीलंका ने भी हिस्सा लिया था। लीग मैच खेलने के बाद यह तय हुआ कि लॉर्ड्स में खेले जाने वाले फाइनल मुकाबले में भिड़ंत भारत और इंग्लैंड के बीच होगी।

इंग्लैंड के कप्तान नासिर हुसैन ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। क्रीज़ पर आए ट्रेस्कोथिक और निक नाइट। दोनों ने संभलकर खेलना शुरू किया और टीम का स्कोर 42 रन तक ले गए। आठवें ओवर की चौथी बॉल पर निक ज़हीर की फुलटॉस बॉल पर बोल्ड हो गए।

इसके बाद मैदान में उतरे कप्तान नासिर हुसैन। नासिर हुसैन जिनके बारे में उस समय सारी दुनिया कह रही थी कि वो नम्बर तीन पर खेलने लायक नहीं हैं। वो नासिर हुसैन जो उस दिन ये सोचकर उतरे थे कि बस आज की पारी और सबका मुंह बंद। उस दिन नासिर हुसैन ने सच में सबका मुंह बंद ही कर दिया। 48वें ओवर की आखिरी बॉल पर आउट होने से पहले नासिर हुसैन ने  128 बॉल में 115 रन बनाए।

ट्रेस्कोथिक के साथ मिलकर उन्होंने दूसरे विकेट के लिए 177 गेंदों में 185 रन की साझेदारी की। इंग्लैंड ने ट्रेस्कोथिक के 109 और फ्लिंटॉफ के 40 रन की पारी बदौलत 50 ओवर में 325 रन बनाये।

उस समय बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में इंडिया भी चोकर ही साबित हो रही थी। हमने 31 जनवरी 1999 से जुलाई 2002 के बीच लगातार 9 फाइनल हारे थे और इंग्लैंड के इस पहाड़ से लक्ष्य को देखते हुए लग रहा था कि गिनती इस बार भी बढ़ने ही वाली थी। गौरतलब है कि हम इन 9 फाइनल मुकाबलों में से पांच में लक्ष्य का पीछा करते हुए हारे थे।

खैर, इंग्लैंड की पारी के बाद इंडिया की पारी शुरू हुई और ओपनिंग करने आए कप्तान सौरव गांगुली व विस्फोटक वीरेंदर सहवाग। ड्रेसिंग रूम से मैदान पर आते समय दादा ने सहवाग से कहा कि पहले 15 ओवर में 100 मारने हैं। उसके बाद देखेंगे कुछ।

उस दिन दादा कुछ और ही मूड में थे। आते ही जो बल्ला भांजना शुरू किया तो ऐसा कि 35 बॉल में अपने 50 रन पूरे किए। चौदहवें ओवर की दूसरी बॉल पर भारत के 100 रन पूरे हो गए थे।

ऐसा लग रहा था कि इस बार दादा इंडिया के फाइनल में हारने के क्रम को रोक कर ही मानेंगे। लेकिन असली खेल तब शुरू हुआ जब पंद्रहवें ओवर की तीसरी बॉल पर दादा बोल्ड हो गए। इंडिया का स्कोर 14.3 ओवर में 1 विकेट गंवाकर 106 रन था। भारतीय खेल प्रेमी अभी इस झटके से उबरे भी नहीं थे कि अगले ओवर की आखिरी बॉल पर सहवाग भी एश्ले जाइल्स को थर्ड मैन पर मारने के चक्कर में बोल्ड हो गए। इसके बाद दिनेश मोगिया और राहुल द्रविड़ भी आए और चले गए लेकिन भारतीय खेल प्रेमी उस वक्त सन्न रह गए जब चौबीसवें ओवर की आखिरी बॉल पर सचिन तेंदुलकर भी जाइल्स के सामने क्लीन बोल्ड हो गए।

तेंदुलकर के बोल्ड होते ही बोल्ड हुई भारत की जीतने की सारी उम्मीदें। कमेंट्री बॉक्स से आवाज़ आ रही थी,

This might be the death now for India in this Natwest series final.

टीम का स्कोर 24 ओवर में 146 पर 5 विकेट था। इसमें सचिन रमेश तेंदुलकर का भी विकेट शामिल था। वो तेंदुलकर जो उस समय लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत के सबसे बड़े खेवनहार थे। इस बात की पुष्टि इससे होती है कि 31 जनवरी 1999 से जुलाई 2002 के बीच इंडिया ने लक्ष्य का पीछा करते हुए सिर्फ दो ही मैच जीते थे जिनमें तेंदुलकर ने अर्धशतक ना बनाया हो।

वो सचिन अब ड्रेसिंग रूम में बैठे थे और मैदान पर थे दो नए और युवा खिलाड़ी। नाम युवराज और मोहम्मद कैफ। जिस बीच सचिन आउट होकर ड्रेसिंग रूम की तरफ जा रहे थे उसी बीच समूचा भारत अपनी आदत के अनुसार अपने-अपने टीवी सेट बंद करके सोने चल दिया था। लेकिन टीवी बंद होने पर कैफ और युवराज ने शायद अपना खेल शुरू किया था।

उस रोज़ दोनों वो करने निकल पड़े थे जिसकी आस किसी को नहीं थी। शायद दादा को भी नहीं। अगली 80 गेंदों तक इंग्लिश गेंदबाज सिर्फ बॉल फेंक रहे थे और फील्डर उसे उठाकर वापस गेंदबाज को दे रहे थे। अगले 80 बॉल में ये दोनों 121 रन जोड़ चुके थे। 42 वें ओवर की चौथी बॉल पर जब युवराज आउट हुए तो इंडिया का स्कोर था 267 पर 6 विकेट। युवराज 63 बॉल में 69 रन बनाकर पवेलियन लौट रहे थे लेकिन पवेलियन लौटने से पहले युवराज ने कैफ के साथ मिलकर भारत के मैच जीतने की उम्मीद भी लौटा दी थी।

टीम को अब भी 50 बॉल पर 59 रन बनाने थे।

युवराज की जगह ली हरभजन सिंह ने और कैफ के साथ मिलकर भारतीय पारी को आगे बढ़ाना शुरू किया। दोनों भारतीय पारी को 314 रन तक लेकर गए जहां पर जाकर भज्जी आउट हो गए और और इसी स्कोर पर कुंबले भी आउट हुए। भारत को अब ट्रॉफी उठाने के लिए अभी 13 बॉल पर 12 रन और बनाने थे और हाथ में थे बस दो विकेट जिनमें से एक थे ज़हीर खान जिनका बल्लेबाजी से वैसा ही रिश्ता था जैसा हिमेश रेशमियां का एक्टिंग से और  फेसबुकिया गज़लकारों का मीटर से।

अगली ओवर की पहली पांच गेंदों पर आए मात्र पांच रन, लेकिन इसी ओवर की आखिरी बॉल कैफ के बल्ले का किनारा लेकर सीधी भागी और ऐसी भागी कि चौके पर जाकर ही रुकी।
भारतीय पारी का आखिरी ओवर, जीत के लिए चाहिए थे मात्र दो रन लेकिन ये दो रन इतने भी आसान नहीं थे क्योंकि बॉल थी उस ज़माने के सबसे शातिर गेंदबाजों में से एक फ्लिंटॉफ के हाथ में। फ्लिंटॉफ उसी गेंदबाज का नाम था जो 3 फरवरी 2002 को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम स्टेडियम में समूचे भारत को अकेले बेइज्ज़त कर चुका था। उस दिन भी आखिरी ओवर में इंडिया के पास 2 विकेट बचे थे और फ्लिंटॉफ ने वो दोनों विकेट लेकर अपनी जर्सी उतारी थी। हर भारतीय क्रिकेट प्रेमी को उस दिन महसूस हुआ था कि जर्सी फ्लिंटॉफ की नहीं उतरी बल्कि उतरी है सारे भारत की इज्ज़त।

खैर, आखिरी ओवर की पहली बॉल लेकर फ्लिंटॉफ ने दौड़ना शुरू किया। फ्लिंटॉफ की दौड़ के साथ ही उस मैच को देख रहे हर एक क्रिकेट प्रेमी की धड़कनों ने भी दौड़ना शुरू किया।

दादा खुद लॉर्ड्स की बालकनी में चिंतित खड़े थे। पहली और दूसरी बॉल पर कोई रन नहीं आया। आखिरी ओवर की तीसरी बॉल सामने ज़हीर खान, आगे निकलकर जैसे-तैसे कवर्स की तरफ धकेला। बॉल धकेलकर ज़हीर भाग चुके थे दूसरे छोर पर जाने के लिए लेकिन फील्डर ने थ्रो किया और थ्रो विकेट पर नहीं लगा। ओवर थ्रो के रूप में इंडिया ने एक रन और ले लिया।
इसके बाद जो हुआ वो सारी दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों की आंखों में आज तक अमर है।

लॉर्ड्स की बालकनी में दादा की जर्सी लहराते हुए तस्वीर भारतीय क्रिकेट की सबसे यादगार तस्वीरों में से एक है। उस तस्वीर ने सारी दुनिया को बताया कि हम भी हैं जो क्रिकेट के दादाओं की आंख में आंख डालकर बात कर सकते हैं, हम सचिन के बिना भी 300 चेज़ कर सकते हैं और सबसे बड़ी बात हम चेज़ कर सकते हैं।

आज हमारे पास सबसे बड़े चेज़ मास्टर हैं, हमारे पास धोनी हैं और चेज़ की दुनिया के अघोषित शहंशाह विराट कोहली हैं लेकिन इस सफर की शुरुआत हुई थी 13 जुलाई 2002 को। हां, अब 13 जुलाई को ही इस सफर का सबसे बड़ा योद्धा क्रिकेट की दुनिया से विदा हो गया है।
वी लव यू मोहम्मद कैफ, भारतीय क्रिकेट को वो तस्वीर देने के लिए, दादा को जर्सी उतारने का मौका देने के लिए, लॉर्ड्स पर तिरंगा फहराने के लिए।

-तुम्हारा एक सच्चा प्रशंसक

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