“सुहागरात को चीखती-तड़पती रही नवविवहिता,
अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता रहा पति:”
“आगरा की रहने वाली एक महिला ने अपने पति पर जबरन अप्राकृतिक सेक्स करने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई, महिला ने बताया, ‘इस घटना से मुझे अंदरुनी चोटें आईं और मुझे हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा।”
“उन्होंने रात भर पॉर्न देखना शुरू कर दिया और उत्तेजना बढ़ाने वाली दवाइयां खाकर ज़बरदस्ती सेक्स के लिए मजबूर करने लगे। अपनी मांगें पूरी न होने पर वो अब मारपीट भी करने लगे थे” – लोकल अखबार की एक खबर।
“एक दिन उन्होंने रत्ना के पांव छत के पंखे से बांधकर एक पॉर्न वीडियो की तरह सेक्स किया। इस घटना ने रत्ना का संयम तोड़ दिया और वो भावनात्मक तौर पर खुद को बहुत कमज़ोर महसूस करने लगीं। जब यह उनकी बर्दाश्त के बाहर हो गया तो उन्होंने अनचाहे मन से तलाक की अर्ज़ी दे दी।” (सोर्स BBC)
इसके अलावा अगर हाल फिलहाल की खबरें देखें तो सात-आठ साल की बच्चियों से दरिंदगी और कहीं-कहीं सात-आठ साल के बच्चों द्वारा दरिंदगी की तमाम खबरें आ रही हैं, लगातार। ये सब हेडलाइन्स रोज़ आने वाले अख़बारों की हैं। आए दिन हम सबकी नज़रों से गुज़रती हैं। आए दिन ही इंटरनेट की दुनिया पर हज़ारों एमएमएस, रेप वीडियोज़, ऑल्ट बालाजी की ‘गन्दी बात’ जैसा कुछ आता रहता है।
इनमें भी दो तरह की चीजें हैं। एक हैं रेप वीडियोज और पॉर्न, जिनके बारे में सबको पता है कि ऐसा करना गलत हो सकता है। पर दूसरी तरह की जो चीजें हैं, वो भयावह हैं। इनमें आती हैं फिल्मों के काटे हुए सीन्स, फिल्म होने से इन सीन्स को सामाजिक स्वीकृति ऑटोमेटिक मिल जाती है। पहली वाली चीज़ों से एक सामान्य इंसान को थोड़ी हिचकिचाहट हो सकती है, पर ये वाली चीज़ें उसे नकल करने को प्रेरित कर सकती हैं। ठीक वैसे ही जैसे फिल्मों के फैशन सेन्स और गाने करते हैं। अगर ऐसे सीन्स में सेक्शुअल वॉयलेंस है तो लोग इसको भी कॉपी करने को प्रेरित हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए, अभी हाल फिलहाल जो चीज हिट है, वह है सेक्रेड गेम्स। काँग्रेस से लेकर राम मंदिर, बम्बई ब्लास्ट, बोफोर्स घोटाला, बीफ, जुनैद, नजीफ सब पर एक ही साथ बात करने वाली सीरीज़। सेक्रेड गेम्स एक दमदार सीरीज़ है। हर एक सीन अच्छे से फिल्माया गया है। डायलॉग्स अच्छे से लिखे गए हैं। जिन मुद्दों के लिए सीरीज़ बनाने वाले लोगों को संवेदनशील करना चाहते हैं, उन पर फोकस किया गया है।
पर सेक्शुअल वायलेंस के मामले में इस सीरीज़ से गलत संदेश लिया जा सकता है। कुछ ऐसी ही बात मुझे गैंग्स ऑफ वासेपुर देखते हुए महसूस हुई थी। क्योंकि ऐसी सीरीज़ कल्ट बन जाती हैं और लोग इनके डायलॉग्स, स्टाइल कॉपी करते रहते हैं।
जिस देश में लगभग हर रोज़ बीवियों से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए जाने की घटनाएं आती हैं, वहां ऐसे सीन दिखाकर क्या आप हिंसात्मक यौन संबंधों की पैरवी नहीं कर रहे?
‘सीन की डिमांड थी, गुंडों की बातचीत ही ऐसी होती है, रियल सिनेमा को ऐसे कल्ट डायलॉग्स की ज़रुरत होती है… ये सब कहकर जस्टिफाई तो किया जा सकता है लेकिन इन चीजों का दूसरा पहलू भी है। उदाहरण के लिए सेक्रेड गेम्स में ही गायतोंडे और सुभद्रा का संबंध। एक सीन में दोनों शारीरिक संबंध स्थापित करते हैं, जहां गायतोंडे हिंसक तरीके से सेक्स करने की कोशिश करता है पर कर नहीं पाता।

सुभद्रा कहती है कि पहले अपने दिमाग का स्ट्रेस उतार, फिर कर पाएगा। यहां पर सुभद्रा का कैरेक्टर हिंसक सेक्स की पैरवी करता ही दिखता है। वो इस चीज़ को नकार नहीं पाती। ऐसा लगता है कि वो भी यही चीज़ें चाहती है। ऐसे सीन्स एक आम इंसान को नॉर्मल और ज़रूरी भी लग सकते हैं।
अगर आप भारत के ग्रामीण परिवेश से परिचित हैं तो आप हर दूसरे लड़के से अक्सर ऐसी बातों का ज़िक्र सुन लेंगे। मेरे हस्बैंड ने मुझे राजस्थान के एक लड़के का किस्सा सुनाया जहां एक लड़के ने पॉर्न से सीखी यौन संबंधों की जानकारी से शादी की पहली रात अपनी ही बीवी की योनि को क्षतिग्रस्त कर दिया। नवविवाहिता को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। शर्मिंदगी की बजाय अगले दिन लड़का दोस्तों में डींगे हांकता मिला कि उसने अपनी बीवी की योनि फाड़ दी। वो ये भी कहता रहा कि इस घटना के बाद उसके आस-पास की लड़कियां उसे बहुत इज्ज़त से देखने लगी थीं।
ऐसे हिंसात्मक माचो मैन बनने की धारणा गढ़ते हैं। ठीक वैसे ही जैसे सेक्रेड गेम्स में गाईतोंडे की बीवी सुभद्रा उसे कहती है कि जब तक इसा को मारेगा नहीं तुझसे होगा नहीं। वैसा सेक्स नहीं होगा जैसा वह कुकू के साथ करता था।
इस बात को इसी सीरीज़ का एक और सीन प्रूव करता है-
एक दूसरे ही सीन में वही बीवी सुभद्रा ज़बरदस्ती टांगे उठा देने पर गायतोंडे को बोल पड़ती है- मैं रंडी नहीं हूं, वैसे नहीं होगा मुझसे। क्योंकि पुरुष जो हिंसात्मक सेक्स अपनी बीवियों के साथ नहीं कर पाते, पैसे देकर वैश्याओं के साथ करते हैं।

ऐसे सीन देखने के बाद वह अब अपनी बीवियों के साथ भी करने की कोशिश करेंगे, क्योंकि अब तो ये नॉर्मल लग रहा है।
लेकिन क्या ऐसी सीरीज़ में वैश्याओं के साथ किए गए हिंसत्मक सेक्स को नॉर्मलाइज किया जाना ज़रूरी है?
आप चाहें तो इसे महिला मुद्दों से जोड़कर बोल सकते हैं कि महिलाओं को भी ऐसा अप्राकृतिक सेक्स अच्छा लगता है, जो ऐसी सीरीज़ में कुछ महिला किरदारों के ज़रिए बताया जाता है। लेकिन ये चीज सोशल नॉर्म तो नहीं बन सकती। अगर ऐसा केस होता तो हमारे अखबार हिंसा की ऐसी खबरों से क्यों भरे रहते?
महिलाऐं अच्छा सेक्स चाहती हैं, सेक्स में हिंसा नहीं। वो हिंसा नहीं जिसमें उन्हें अपनी शादी के अगले दिन ही अस्पतालों में भर्ती होना पड़े। जहां गैंग रेप के बाद महिलाओं और बच्चियों के यौन अंगों को क्षतिग्रस्त करने के लिए रॉड घुसेड़ने जैसी घटिया हरकत की जाए।
फिल्मों और टीवी सीरीज़ में महिलाओं की सेक्शुएलिटी की बजाय सॉफ्ट पॉर्न दिखाया जा रहा है। कमाल की बात ऐसी होती है कि इन किरदारों को लिखने वाले इसमें महिलाओं की इच्छा भी दिखा देते हैं।
जब सिगरेट पीने का सीन आता है तो नीचे चेतावनी लिखी आती है, जब दारु का सीन होता है तो फिर चेतावनी लिखी आती है, तो ऐसे हिंसक दृश्यों में भी चेतावनी लिखी जानी चाहिए।
नेटफ्लिक्स की एक अच्छी बात है कि यहां सेंसर बोर्ड की छुरी नहीं है, लेकिन ऐसे समय में जब अखबारों के पहले पन्ने गैंग रेप और बीवियों के साथ हुई ज़्यादतियों से भरे हों वहां आपको खुद सेंसर बनना पड़ेगा। हम अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते कि फिल्में तो फिल्में हैं। लोगों को बताना ही होगा, क्योंकि लोगों के दिमाग पर फिल्मों का असर सबसे ज़्यादा होता है।
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