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छपरा मिड डे मील हादसा: 23 बच्चों की मौत के 5 साल बाद कितने बदले हैं हालात

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16 जुलाई 2013 की वह सुबह दूसरे अन्य दिनों की तरह ही बिहार के सारण ज़िले के धर्मासती गंडामन गांव के निवासी सुरेंद्र प्रसाद के लिए भी एक सामान्य दिन था। उस दिन भी उनकी पत्नी आशा देवी ने अपनी दोनों बेटियों ममता और सविता और बेटे उपेंद्र को तैयार करके स्कूल भेजा। बच्चों को स्कूल भेजकर आशा घर के कामों में व्यस्त हो गईं। दोपहर करीब एक बजे उन्हें खबर मिली कि स्कूल में मिड डे मील खाकर बच्चों की तबीयत बिगड़ रही है। सुरेंद्र और आशा दोनों भागे-भागे स्कूल पहुंचे। स्कूल के पास अफरातफरी का माहौल था। दर्जनों बच्चे बेहोश पड़े थे।

सुरेंद्र प्रसाद

सुरेंद्र तुरंत अपने बच्चों को लेकर मशरक प्राथमिक अस्पताल पहुंचे लेकिन, यहां की बदइंतज़ामी देखकर वह छपरा सदर अस्पताल गए। यहां उनके सामने कई बच्चों की जान चली गई। इसे देख बच्चों के परिजनों ने हंगामा करना शुरू कर दिया। फिर देर रात एम्बुलेंस से बच्चों को पटना ले जाया गया, जहां उन्हें पीएमसीएच में भर्ती कराया गया। लेकिन सुरेंद्र की बेटी ममता ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। सुरेंद्र के बच्चों (सविता और उपेंद्र) का पीएमसीएच में करीब एक महीने तक इलाज चला और वे ठीक हो गए। सुरेंद्र ने अपनी 10 साल की बेटी ममता को इस हादसे में खो दिया।

सुरेंद्र कहते हैं,

अगर हमारे बच्चे उस दिन स्कूल नहीं गए होते तो मेरी बेटी ममता आज ज़िंदा होती। उस हादसे को पांच वर्ष हो गए लेकिन हमलोग आज भी उसका दुख भोग रहे हैं। अभी तक हम गरीबों के आंसू पोछने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश जी नहीं आए। उन्होंने इस गांव को गोद लिया था।

सुरेंद्र आगे कहते हैं,

ऐसा मुख्यमंत्री हमलोगों ने पूरे हिन्दुस्तान में नहीं देखा। 23 बच्चे मर गए लेकिन सीएम हम सब से मिलने तक नहीं आए। हमलोग को आश्वासन दिया जाता है कि मुख्यमंत्री मिलने आएंगे लेकिन, आज तक वो नहीं आए। सीएम एक बार आकर हमलोग के दुख को समझें, वो ही ना हमारे सबकुछ हैं।

हादसे के दौरान स्कूल एक सामुदायिक भवन में चलता था लेकिन, अब यहां स्कूल भवन बना दिया गया है। स्कूल के बगल के मैदान में 23 बच्चों को दफनाया गया था। इस मैदान के पास एक स्मारक का निर्माण कराया गया, जिस पर सभी मृत बच्चों के नाम और उम्र व उनके माता-पिता का नाम दर्ज है।

सुरेंद्र बताते हैं,

मेरी बेटी तो नहीं रही। अब बस यह स्मारक ही है जो उसकी याद दिलाता है। हालांकि घटिया निर्माण होने के कारण अब स्मारक भी क्षतिग्रस्त होने लगा है। इसमें लगा पत्थर गिर रहा है।

हादसे में अपने दो बेटों राहुल और प्रह्लाद को गंवा चुके हरेंद्र किशोर मिश्रा उस मनहूस दिन को याद कर सिहर उठते हैं। हरेंद्र सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहते हैं,

नीतीश सरकार से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। देखिए हमारे बच्चों की याद में बनाया गया स्मारक टूट रहा है। सरकार अगर सहयोग करने को तैयार है तो सबसे पहले हमारे बच्चों के स्मारक की मरम्मत कराए।

हादसे के बाद खोले गए स्कूल में शिक्षकों और अन्य सुविधाओं की कमी

स्थानीय मुखिया प्रतिनिधि महेश सिंह अधिकारियों के बारे में बोलने से बचते हैं लेकिन कहते हैं कि मिड डे मील क्वालिटी के अनुसार नहीं बन रहा है। महेश कहते हैं कि जो सरकार का मेन्यू है उसके हिसाब से खाना नहीं बन रहा है। हादसे के बाद प्राइमरी स्कूल के सामने बने उच्चतर माध्यमिक स्कूल (प्लस टू की पढ़ाई तक अपग्रेडेड) के बारे में महेश बताते हैं कि इस स्कूल की हालत बहुत खराब है। स्कूल में सयाने बच्चे-बच्चियां पढ़ने आते हैं लेकिन, वहां कोई व्यवस्था नहीं है। उसमें बैठने के लिए बेंच तक नहीं है। महेश बताते हैं कि इस स्कूल में लगभग 250 बच्चे पढ़ते हैं लेकिन, शिक्षक केवल दो हैं और एडमिशन अभी भी हो ही रहा है।

शिक्षक बिपिन कुमार बताते हैं कि यह स्कूल जुलाई 2017 में शुरू हुआ था। इसमें अभी 2017-19 का सेशन चल रहा है। यहां दो शिक्षक हैं और दोनों प्लस टू के हैं। हाई स्कूल के एक भी शिक्षक नहीं है। हम दो शिक्षक ही मिलकर 9वीं से 12वीं तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। बिपिन बताते हैं कि यहां इंटरमीडिएट के साइंस और आर्ट्स विषय में एडमिशन लिया गया है। लेकिन जो दो शिक्षक हैं वे आर्ट्स के हैं, साइंस के एक भी शिक्षक नहीं हैं।

बिपिन कहते हैं कि हमलोग आर्ट्स पढ़ाते हैं लेकिन, मजबूरी में साइंस की क्लास भी लेनी पड़ती है। इस स्कूल में इंटरमीडिएट (बायोलॉजी) के छात्र विकास कुमार कहते हैं कि अगले साल इंटर की परीक्षा है लेकिन, हमारे विषय के शिक्षक यहां हैं ही नहीं। ना लैब है और ना शिक्षक। सब भगवान भरोसे है।

शिक्षक बिपिन

बिपिन बताते हैं कि इस स्कूल में सबसे बड़ी समस्या शिक्षकों की कमी है। इस स्कूल में 22 शिक्षकों की जगह है लेकिन, सिर्फ दो शिक्षकों पर यह स्कूल चल रहा है। बिपिन बताते हैं कि स्कूल को चालू हुए एक साल हो गए लेकिन, अभी तक एक भी बेंच, कुर्सी और पंखा नहीं मिला है। हैंडपम्प है लेकिन वो भी खराब है। स्कूल में बिजली वायरिंग की हुई है। पास में बिजली का खंभा भी है लेकिन, स्कूल में कनेक्शन अभी तक नहीं लिया गया है। इस दो मंजिला स्कूल में सिर्फ दो कमरों में क्लास चलती है। एक कमरे में पास के मीडिल स्कूल से चार-पांच बेंच लाकर लगाया गए हैं जबकि दूसरे कमरे में एक भी बेंच नहीं है।

इन सब समस्याओं को लेकर डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन ऑफिसर (डीईओ) को बार-बार लेटर लिखकर दिया गया है लेकिन, कोई सुनवाई नहीं हुई। बिपिन कहते हैं कि इस स्कूल के और डेढ़ किलोमीटर दूर मीडिल स्कूल के हेडमास्टर एक ही हैं लेकिन सर का ज़्यादा ध्यान मीडिल स्कूल पर रहता है। इस स्कूल का सारा काम हम देखते हैं, सर महीने में बस एक-दो बार आते हैं। वजह पूछने पर बिपिन बताते हैं कि उस स्कूल में मिड डे मील चलता है और पांच साल पहले हुए कांड की वजह से अब जब तक बच्चे स्कूल में खाना नहीं खा लेते तब तक सर स्कूल नहीं छोड़ते हैं। उस कांड के बाद से यहां का माहौल कुछ दूसरा हो गया है।

प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर राजेश कुमार कहते हैं कि हमारे यहां तीन स्टाफ हैं। एक हम और दो मैडम हैं। स्कूल में कुल 133 बच्चों का नामांकन है। रोज़ 70-80 बच्चे स्कूल आते हैं। स्कूल का टाइम सुबह नौ से शाम चार बजे तक का है। हालांकि स्थानीय मुखिया प्रतिनिधि महेश कहते हैं कि इस स्कूल का हेडमास्टर किसी काम का नहीं है। हेडमास्टर 10 बजे से पहले कभी स्कूल नहीं आते और 11 बजे छुट्टी कर देते हैं।

मिड डे मील का है ये हाल

स्कूल का रसोईघर

गांव के लोग बताते हैं कि हादसे के बाद स्कूल के पास रसोईघर बना, उसमें अभी तीन रसोईया हैं लेकिन हर दिन स्कूल में खाना नहीं बनता। हादसे की बरसी है और आज आपलोग आए हैं तो खाना बन रहा है। बाकी दिनों में खाना नहीं बनता है। आज जो 70-80 बच्चे आए हैं वो भी इकट्ठा करके लाए गए हैं वरना मुश्किल से 40-50 बच्चे आते हैं।

हालांकि स्कूल की रसोइया राजपति कुंवर कहती हैं कि यहां रोज खाना बनता है। मेरे साथ संपत्ति कुमारी और जानकी देवी भी मिड डे मील बनाती हैं। आज शनिवार है और बच्चों को खिचड़ी-चोखा बनाकर खिलाया जाएगा। राजपति बताती हैं कि हादसे से पहले वह मीडिल स्कूल में रसोइया थीं लेकिन, हादसे के बाद इस स्कूल की रसोइया मंजू देवी को मीडिल स्कूल भेज दिया गया और मुझे यहां भेज दिया गया।

प्राइमरी स्कूल में चौथी क्लास में पढ़ने वाली पूजा कहती हैं कि यहां रोज़ पढ़ाई होती है। सर-मैडम रोज़ आते हैं। हर दिन अलग-अलग खाना मिलता है। हालांकि पूजा से बात करके लगता है कि सर और मैडम ने उसे पहले ही समझा दिया था कि उसे हमसे क्या बोलना है।

एक ही कमरे में बैठे क्लास एक से तीन तक के बच्चे

प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका कुमारी कल्पना बताती हैं कि यहां भी शिक्षकों की कमी है। यहां  मेरे और हेडमास्टर राजेश के अलावा एक और मैडम हैं जिनका नाम कुमारी लीलावती है। लीलावती अभी प्रशिक्षण पर गई हुई हैं। कल्पना बताती हैं कि शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों को पढ़ाने में दिक्कत होती है। अभी मैं पहली से तीसरे क्लास तक के बच्चों को एक क्लास में बैठा कर पढ़ा रही हूं जबकि बगल के कमरे में चौथे और पांचवी क्लास के बच्चे बैठे हैं। अब इनको छोड़कर उन्हें पढ़ाने जाऊंगी तो ये सब बाहर निकल जाएंगे। हादसे के दौरान कल्पना इसी स्कूल में थीं, हालांकि उस दिन वो छुट्टी पर थीं।

स्वास्थ्य उपकेंद्र खुलने से नहीं हुआ कोई फायदा

एएनएम मंजू

हादसे के बाद स्कूल के पास में ही एक स्वास्थ्य उपकेंद्र खोला गया। यहां पिछले एक साल से एएनएम मंजू कुमारी की ड्यूटी लगी है। मंजू बताती हैं कि पहले यहां मेरे अलावा एक और एएनएम थीं लेकिन मई में उनका ट्रांसफर कहीं और हो गया। मंजू रजिस्टर में दर्ज नाम दिखाते हुए बताती हैं कि आसपास के गांव के लोग यहां आते हैं और उपलब्ध दवाओं का लाभ लेते हैं।

हालांकि गांव के लोग कहते हैं कि यह स्वास्थ्य उपकेंद्र भी बंद रहता है और इसके खुलने बंद होने का टाइम टेबल नहीं है। स्वास्थ्य उपकेंद्र में मरीज़ के लिए लगे बेड पर  जमी धूल और शौचालय की गंदगी की ओर इशारा करते हुए गांव के लोग कहते हैं कि एएनएम झूठ बोल रही हैं, वो रजिस्टर में खुद से लोगों के  नाम भर देती हैं। गांव के लोग कहते हैं कि यहां स्वास्थ्य सेवा का कोई साधन नहीं है। एमरजेंसी में भागकर छपरा जाना पड़ता है।

स्वास्थ्य उपकेंद्र का बेड

इंदिरा आवास में हुआ घोटाला, पीएम को लिखी चिट्ठी

हादसे के बाद मृत परिवारों को इंदिरा आवास देने की घोषणा हुई थी। सुरेंद्र एक अखबार में छपी खबर को दिखाते हुए कहते हैं कि 20 सितम्बर 2013 को मृत परिवारों के नाम पर दूसरे लोगों को इंदिरा आवास योजना का चेक दे दिया गया। खबर में छपी फोटो में एक आदमी भी मृत परिवार से नहीं है। सुरेंद्र कहते हैं हमलोग के साथ बहुत घोटाला हुआ है। रिश्वत लेकर किसी और को लाभ दे दिया गया। इसकी जांच के लिए चार-पांच बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखे हैं, इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी पत्र लिख चुके हैं।

मृत परिवारों को मिलती है धमकी

शंकर ठाकुर कहते हैं कि सीएम-डीएम के जनता दरबार में लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है। लोग पैसा खर्च कर जाते हैं लेकिन कोई काम नहीं होता है। शंकर पूछते हैं कि कर्मचारी सब ठीक होता तो हमलोग का बच्चा मरता? हम लोग स्मारक को लेकर, इंदिरा आवास में हुए घोटाले को लेकर सवाल उठाते हैं तो हम सब को डराया-धमकाया जाता है। अधिकारी और गांव के दबंग लोग कहता है कि सवाल मत करो। क्षतिग्रस्त स्मारक को दिखाते हैं तो कहता है कि ये सब मत दिखाओ। अब बताइये हमलोग ये सब नहीं दिखाएं? सब मिलकर बहुत घटिया व्यवहार करता है हमारे साथ। मृत परिवार को देखने सुनने वाला कोई नहीं है। मीडिया पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए शंकर कहते हैं कि अब मन भर गया है। कहते कहते थक गए हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुआ अब तक। हमलोग आपसे कह तो रहे हैं लेकिन डर लगता है कहीं कोई कुछ कर दिया तो।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

स्थानीय सांसद ने भी नहीं की मृत परिवार से मुलाकात

महराजगंज लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल के प्रति नाराज़गी जाहिर करते हुए शंकर ठाकुर बताते हैं कि सिग्रीवाल जी कहते हैं कि आएंगे लेकिन कभी नहीं आए। बगल के गांव में आते हैं लेकिन गंडामन कभी नहीं आते। पिछले साल हादसे की बरसी पर उनसे संपर्क किया गया तो कहे कि हम दिल्ली में हैं। फ्लाइट छूट गया हमारा। सब नेता लोग झूठ बोलते हैं। कोई हमारा सहयोग नहीं करता है। हालांकि शंकर बताते हैं कि हादसे के वक्त तत्कालीन सांसद प्रभुनाथ सिंह आए थे लेकिन अभी वे जेल में हैं।

हरेंद्र किशोर मिश्रा कहते हैं कि मिड डे मील हादसे में मेरे दोनों बेटे छपरा अस्पताल में ही दम तोड़ दिए थे। मेरे बच्चे मेरे बुढ़ापे का सहारा थे। अब हमलोग मुसीबत में हैं तो कोई भी नेता हमलोग से मिलने नहीं आता। हमलोग को सरकारी नौकरी का भी आश्वासन दिया गया था लेकिन वो भी नहीं मिला।

गांव वालों से बातचीत के दरम्यान पन्ना देवी खुद चलकर हमारे पास आती हैं। पन्ना देवी के साथ हादसे के दिन प्राइमरी स्कूल में खाना बनाने वाली रसोइया मंजू देवी भी हैं। दोनों अभी मीडिल स्कूल में रसोइया हैं और अभी खाना बनाकर घर लौट रही हैं। पन्ना देवी बताती हैं, “उस दिन मेरे तीन बच्चे उस स्कूल में खाना खाए थे। इसमें मेरी बेटी की मौत छपरा में हो गई जबकि मेरे बेटे रोहित ने पटना पहुंच कर दम तोड़ दिया। हालांकि मेरी बेटी निशा का पटना में इलाज हुआ और वो बच गई।”

मंजू देवी और पन्ना देवी

मंजू देवी उस दिन को याद नहीं करना चाहती हैं। हालांकि मंजू कहती हैं,

उस दिन मैंने खाना चखा था और मेरे तीन बच्चों ने भी खाना खाया था। हम सबकी भी तबीयत बिगड़ी लेकिन, पटना में इलाज चला और हम सब बच गए। हालांकि मंजू कहती हैं कि तबीयत अभी भी ठीक नहीं रहती। मुझे और मेरे बच्चों को अक्सर पेट दर्द और चक्कर आने की समस्या होती है। प्राइवेट डॉक्टर से दिखवाया है। डॉक्टर कहते हैं कि जीवनभर इस तरह की स्वास्थ्य समस्या होती रहेंगी।

पन्ना देवी अपनी बेटी निशा का पटना में हुए इलाज के बारे में बात करते हुए कहती हैं कि वहां बच्चा सबका ठीक से इलाज हुआ। वहां मीडिया के लोग वीडियो कैमरा लेकर आते थे तो पुलिस-डॉक्टर मंजू देवी को छोड़कर बीमार बच्चों के परिवार को सो जाने को कहता था। वो लोग कहते थे ये सब सरकार आपलोगों के लिए किया है, मीडिया के लिए नहीं। वो कहते थे मीडिया से बात नहीं करिए। वो आएं तो सो जाइए। पन्ना देवी कहती हैं वहां हमलोग को देखने लालू जी आए और कहे आपलोग के लिए व्यवस्था किया जाएगा।

रसोइयों से ज़्यादा कमा लेते हैं मज़दूर

पन्ना देवी और मंजू देवी की शिकायत है कि सरकार रसोइयों की तनख्वाह बढ़ाए। पन्ना देवी कहती हैं कि अभी हमें हर महीने 1200 रुपये मिलता है, मतलब एक दिन का 40 रुपया। हमलोग का काम खाना बनाने का है लेकिन, हमलोग से स्कूल में झाड़ू लगवाया जाता है, बर्तन धोना पड़ता है। हमलोग सुबह स्कूल जाते हैं और दोपहर-शाम तक घर लौटते हैं। पन्ना देवी पूछती हैं कि अब बताइए आज के टाइम में 40 रुपया में पूरा दिन कोई खटेगा? भिखारी भी भीख मांगे तो एक दिन में 40 रुपया से ज़्यादा जमा कर लेगा। आज गांव में मज़दूर भी रोज़ 250-300 रुपया मज़दूरी कमा लेता है।

मंजू देवी कहती हैं कि तबियत ठीक नहीं रहता, नहीं तो किसी के खेत में मज़दूरी करके ज़्यादा कमाई हो जाता है। सरकार को हमलोग पर ध्यान देना चाहिए, हमलोग का वेतन बढ़ाना चाहिए।

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[नोट- रिपोर्ट की सभी तस्वीरें बैचलर ऑफ मास कम्युनिकेशन के फर्स्ट इयर के स्टूडेंट प्रशांत राज ने ली हैं।]

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