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मुज़फ्फरपुर में बाकी सब है, नहीं है तो बस बालिका आश्रय में हुए शोषण के प्रति क्रोध

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मुज़फ्फरपुर में मोतीझील जैसा बड़ा बाज़ार है, देवघर के समान प्रसिद्ध बाबा गरीबनाथ हैं और हर सोमवार उन पर जल ढारते लाखों लोग भी हैं। नहीं है तो एक चीज़- बालिका आश्रय में लड़कियों के हुए शोषण के प्रति क्रोध।

फरवरी-मार्च 2018 से उठे ब्रजेश ठाकुर द्वारा संचालित बालिका आश्रय में हुए शोषण के प्रति लोगों में उत्सुकता तो है जानने की, कि क्या हुआ, लेकिन वो क्रोध नहीं है जो इस मामले से जुड़े अपराधियों को उनकी लिजलिजी अस्मिता का बोध कराता। ना ही वो ग्लानि है कि इसी शहर में रहकर लोगों को पहले ही इस मामले के बारे में पता क्यों नहीं चला, ना ही है पछतावा उन पड़ोसियों को ये घटना नहीं रिपोर्ट कराने का, जिनको शायद बच्चियों के रोने चीखने की आवाजें सुनाई पड़ी थीं। मुज़फ्फरपुर की जनता निस्पृह भाव से अपने काम में लगी है। उनसे बातें करके ऐसा लगता है जैसे किसी दुस्वप्न के बारे में बात कर रहे हों, जो आया और चला गया।

मुज़फ्फरपुर में चाय की एक दुकान

पर ऐसा भी नहीं है कि यह शहर निर्विकार भाव से अपना काम करता है। यहां के होटलों में अगर पति-पत्नी का सरनेम एक नहीं हुआ तो शादी की तस्वीर मांगी जाती है प्रमाण के लिए। स्टाफ इस चीज़ को लेकर बहुत सचेत रहता है। यहां के मार्केट में अगर आपने कई सवाल पूछ लिए तो वो जानने की कोशिश करते हैं कि आप कहां से आये हैं, क्या करते हैं, पत्रकार हैं तो गाड़ी क्यों नहीं है?

मुज़फ्फरपुर रेलवे स्टेशन के पास ब्रजेश ठाकुर को कोई नहीं जानता। हां, इस मामले को ज़रूर जानते हैं, पान-बीड़ी बेचनेवाले से लेकर रिक्शेवालों ने भी थोड़ा बहुत सुना है। कॉलेज जानेवाले लड़कों ने भी सुना है, पर अखबारों से ही। ब्रजेश ठाकुर इनके लिए वो नाम नहीं है, जिसे ये रोज़ सुनते हों या जिससे ये खौफ खाते हों।

रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर दूर साहू रोड पर वार्ड नं 22 में है ब्रजेश ठाकुर का बड़ा सा घर। साहू रोड से ज़्यादा इस रोड को दीपक सिनेमा वाले रोड के नाम से जाना जाता है। साहू रोड सीधा निकल जाता है, बाबा गरीबनाथ के मंदिर की तरफ। सावन चल रहा है, तो पूरी सड़क पर कांवड़ियों के आने जाने के लिए शानदार बैरिकेडिंग की हुई। उनकी सेवा में प्रशासन लगा हुआ है, बड़े-बड़े अक्षरों में ये सेवा भाव बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर भी दर्शाया गया है।

बाबा गरीबनाथ की ब्रैंडिंग

वार्ड नं 22 की ही महापौर हैं वर्षा सिंह। उन्हीं के वार्ड में आश्रय गृह वाली घटना हुई, रोड से सटी हुई पतली सी गली के मुख पर प्रातःकमल अखबार का बोर्ड टंगा हुआ है। ये गली सीधा ब्रजेश ठाकुर के घर पर खत्म होती है, वहां वो बांयी तरफ मुड़ती एक और पतली गली में तब्दील हो जाती है। ब्रजेश के घर में ताले लगे हुए हैं, पर बड़े से गेट के पीछे नज़र आता है खाट पर बैठा एक पुलिसवाला। वो कहता है कि अंदर आने की किसी को अनुमति नहीं है। सीबीआई भी आई थी तो किसी को अंदर नहीं जाने दिया गया था। गत शनिवार सीबीआई ने वहीं पर ब्रजेश के बेटे से पूछताछ की थी। वो बेटा ही प्रातःकमल अखबार का संपादक है।

ब्रजेश ठाकुर का घर

पतली गली में चलते हुए ब्रजेश ठाकुर के घर के ठीक पीछे एक दरवाज़े पर निगाह अटक जाती है। नीले और लाल रंग में एक नेमप्लेट लगा हुआ है, सब-इंसपेक्टर हैं कोई। मन में आया कि क्या इन इंसपेक्टर साहब को भी कभी ऐसा कुछ पता नहीं चला?

वहीं गली के मोड़ पर तीन लड़के बैठे हुए थे। इस मामले के बारे में पूछने पर बताया कि वो सारे बाहर पढ़ते हैं, इसलिए ज़्यादा कुछ पता नहीं. थोड़ा ज़्यादा पूछने पर, उनके विचार ही पूछने पर, वो चुपचाप फोन में किसी को कॉल लगा व्यस्त होने का बहाना कर निकल लिए। पड़ोसियों ने तो विगत चार-पांच महीनों में इतना कुछ इतनी बार कह दिया है कि अब कुछ बताना उनको खुद की गलती लगती है। पर उनमें भी किसी बात का पछतावा नहीं है। चेहरे पर इस मामले को पहले से जानने का भाव है और फिर बार-बार बताने की उकताहट।

Brijesh Thakur Locality Muzaffarpur Shelter Home case
ब्रजेश ठाकुर के घर के पास खड़े तीन लड़के (बाएं) और सब इंस्पेक्टर का घर (दाएं)

गली खत्म कर दायीं ओर मुड़ने पर पीछे मार्केट की तरफ निकल जाते हैं। वहां के दुकानदार भी मामले के बारे में कुछ विशेष जानने से अनभिज्ञता ही प्रकट करते हैं। आस-पास काम कर रहे मज़दूरों ने तार्किक रूप से यही बात कही कि हम नौ बजे आते हैं, शाम के छह बजे अपने घर निकल जाते हैं। तो इन चीज़ों के बारे में बता नहीं सकते। जो भी पता चला अखबार या टीवी से सुन के ही पता चला। पूछने पर कि क्या आपको शॉक लगा, बड़े आराम से कहते हैं कि हां लगा, हमारा ही तो शहर है, लगेगा ही।

हालांकि उनके मोबाइल पर जल ढारने की एक वीडियो के बारे में पूछने पर बड़े ही उत्साहित होकर बताते हैं कि बाबा गरीबनाथ अब देवघर के बाद दूसरे नंबर पर हैं। यहां अबकी सावन में चार लाख लोगों ने जल ढारा है। पुलिस के भी हाथ-पांव फूल गये थे इसे संभालने में। फिर वो आपस में बहस करने लगते हैं कि पटना तक से लोग आते हैं यहां। बाबा गरीबनाथ अब ज़्यादा प्रसिद्ध हो जायेंगे, उनका मानना है। फिर वो हमें बाबा के मंदिर तक का रास्ता भी कई बार बताते हैं। इतना पक्का बताया कि बिना भटके हम सीधा वहां पहुंच गये।

बाबा गरीबनाथ धाम, मुज़फ्फरपुर

बाबा गरीबनाथ को लेकर शहर के लोगों में काफी उत्साह है। ऐसा लगता है कि इनके माध्यम से शहर देश में सुर्खियों में बन सकता है। कम से कम सावन के महीने में तो ज़रूर। ऐसा टेलीकॉम की कंपनियों और अखबारों के होर्डिंग देख के भी लगता है। इन सबने मिलकर मुज़फ्फरपुर को बाबा की नगरी बना दिया है। इस मामले में एक बाबा जिन्नात ग्रुप भी पीछे नहीं रहा। जिन्नात का गरीबनाथ के प्रति इतना सौहार्द देखकर आश्चर्य हुआ।

बाबा गरीबनाथ के प्रचार से पटा मुज़फ्फरपुर

यहां के लोग भी ब्रजेश ठाकुर को उतना ही जानते हैं, जितना कि बाकी जगहों के लोग। कहने का मतलब कि ब्रजेश ठाकुर के आश्रय गृह में होनेवाली बातों की जानकारी सबको थी, ऐसा लोग अपने चेहरे के भाव से बताते हैं। साथ ही ये भी कहना नहीं भूलते कि ऐसे बहुतेरे लोग हैं राज्य में, जिनका कुछ बिगाड़ा नहीं जा सकता। साथ ही कुछ लोग हंसते भी हैं कि ऐसे लोग बहुत ज्यादा उड़ते हैं और गिरते भी हैं।

फिर हम रिक्शा लेकर यहां से चतुर्भुज स्थान चले गये। मुगल काल से यह जगह नृत्य और गायन के लिए मशहूर रही है। कालांतर में इस जगह पर वेश्यावृत्ति करने का दाग लगा और फिर ये छूटा नहीं। कहा जाता है कि शरतचंद्र को ‘देवदास’ की चंद्रमुखी का चरित्र इसी जगह से मिला था। यहां पर कुछ लड़कियां अपने घरों के बाहर बैठी मिलती हैं। बात करने पर भागने लगती हैं, कहती हैं कि फोटो मत खींचो। भरोसा दिलाने पर बैठ जाती हैं। बताती हैं कि मुजरे के पांच सौ लगते हैं, फिर हर गाने का दो सौ।

जब लोग इकट्ठा हो जाते हैं शाम को तो प्रोग्राम होता है। आश्रय गृह की बातों पर कुछ सोचते हुए कहती हैं कि हां, सुना तो था, पर ज़्यादा कुछ कह नहीं पातीं। उनके भाव से लगता है कि इसमें नया क्या है। फिर हम उनके घर में लगे सलमान खान की फोटो खींच लेते हैं। वो हंसने लगती हैं कि सलमान ही लोगों को ज़्यादा पसंद है, इसलिए उसकी फोटो लगाई है। वरना खुद के लिए तो साईं बाबा की लगाई है। आगे चलकर मुहल्ले में एक घर मिला है, जहां बाकायदा बताया गया है कि ये ‘फैमिली घर’ है।

चतुर्भुज स्थल (बाएं) और दीवार पर लगी सलमान और साईं बाबा की फोटो

फिर हम एक हिंदी दैनिक के वरिष्ठ पत्रकार से मिलते हैं. वो कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि लोगों में गुस्सा नहीं था, मार्च निकाले गये थे, प्रदर्शन हुआ था पर इस बात से उन्होंने भी इंकार नहीं किया कि जनता सड़कों पर आ जाये, ऐसा गुस्सा नहीं था लोगों में।

वहां घूमते हुए ऐसा लगा कि आश्रय गृह की इन 34 लड़कियों से लोगों को सहानुभूति तो थी, पर किसी को ऐसा नहीं लग पा रहा था कि उनकी अपनी बच्ची भी इन लड़कियों में से हो सकती है। क्योंकि ऐसा होने का कोई चांस ही नहीं है। कठुआ में हुआ बलात्कार कांड हो या निर्भया कांड हो, सबमें लोगों को अपनी बेटियां नज़र आईं। लगा कि कल को हमारी बेटी के साथ भी ऐसा हो सकता है पर मुज़फ्फरपुर की इन बेटियों की जगह पर अपनी संतान को रख के सोच पाना असंभव लगता है लोगों को।

साहू रोड पर प्रातःकमल अखबार के होर्डिंग के ठीक सामने निःसंतान दंपतियों के लिए बच्चों की ज़रूरत से संबंधित होर्डिंग लगी है। पर कहीं पर ये देखने को नहीं मिला कि इन 34 बच्चियों में से भी किसी को गोद लिया जा सकता है। ऐसी बातों पर लोगों के चेहरे सपाट हो जाते हैं। लगता है जैसे लोगों ने कुफ्र सुन लिया हो। ये पूछने पर कि आपकी बेटी ऐसी स्थिति में फंस जाये तो उनके चेहरे के भाव कहते हैं कि अभी तो हमारे घर में लोग ज़िंदा हैं ही, तो ऐसी स्थिति में कैसे आ जाएंगी बेटियां। ये पूछने पर कि क्या उन लड़कियों की भी गलती थी, कुछ लोग इंकार नहीं करते। कहते हैं कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। लगा कि मामले की बजाय मुहावरा इस्तेमाल करने में उनका ज़्यादा ज़ोर है।

Pratah Kamal Newspaper office Muzaffarpur
प्रात:कमल अखबार का बोर्ड

साहू रोड की तरफ मुड़ने से पहले बने फ्लाईओवर के नीचे कपड़ा बेचते एक पुरुष ने ज़ोरदार आवाज़ में कहना शुरू किया- गरीबों की बेटी है तो ये सब हो गया, अगर अमीरों की बेटी होती तो कब का मामला सामने आ गया होता। उसके आस-पास के लोग इतनी मुखरता से नहीं बोल पा रहे थे। उस आदमी ने बताया कि वो रोज अखबार पढ़ता है। उसके पास अखबार था भी पर वो ब्रजेश ठाकुर के घर की लोकेशन से अनभिज्ञ था। अलबत्ता, दीपक सिनेमा वाला रोड उसी ने बताया।

ज़्यादातर लोग ऐसे मिले जो मुज़फ्फरपुर की अस्मिता को लेकर सचेत थे। अपने शहर की इमेज बचाना चाह रहे थे। अभी मुज़फ्फरपुर ने किसी सूचकांक में पटना को पछाड़ा है बिहार के सबसे अच्छे शहरों की लिस्ट में।


नोट: सभी तस्वीरें, ज्योति यादव द्वारा ली गई है जो उन्होंने रिपोर्ट बनाने के दौरान क्लिक की हैं।

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