गाड़ी पटना से निकलती है और बिहटा होते हुए पहुंचती है एक संकरे से पुल पर। यह पुल है बिहार का फेमस कोइलवर पुल।
आरा ज़िले में एक कहावत चलती है, ‘बाह-बाह रे अंग्रेज़ बहादुर, कोइलवर पुल बनवाया है, नीचे गाड़ी चलती है, ऊपर रेल चलता है।’
156 साल पुराना यह पुल भारत का सबसे पुराना रेलवे पुल है। लोग इसे आम बोलचाल में कोइलवर ब्रिज ही बोलते हैं पर इसका असली नाम है अब्दुल बारी पुल। यह पुल आरा को पटना से जोड़ता है। अब इस कहानी में एक और पुल है, ‘आर के सिंह’, जो आरा को दिल्ली से जोड़ते हैं।
आर के सिंह
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आर के सिंह माने राजकुमार सिंह। आर के सिंह 1975 बिहार प्रदेश कैडर के आईएएस रहे हैं। इनकी छवि एक कड़क प्रशासक की रही है। यह पटना के डीएम भी रहे हैं। लालू यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए, इन्हें लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने भेजा था। इन्होंने तब रथ यात्रा रोककर आडवाणी को गिरफ्तार भी किया था। यूपीए 1 और 2 में सरकार के पसंदीदा अफसरों में रहे हैं। गृह मंत्री चिदंबरम के तो एकदम खास अफसर माने जाते थे।
गृह सचिव के पद से रिटायर होकर, 2014 में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर आरा लोकसभा सीट से लड़े और जीते। अभी भी केंद्र में ऊर्जा विभाग के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं।
आर के सिंह का कास्ट फैक्टर
आरा राजपूत बहुल ज़िला है। आर के सिंह भी राजपूत जाति से आते हैं तो यहां से इनके जीतने का पूरा माहौल बना हुआ है। हालांकि, ज़िले के कुछ भाजपा कार्यकर्ता खुद सिंह से नाराज़ बताए जा रहे हैं पर जनता सांसद के रूप में सिंह के कार्यों से संतुष्ट दिख रही है। केंद्रीय विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई कर रहे अंजनी कुमार भी आरा ज़िले से हैं और उनकी राय में सांसद के तौर पर जितना काम आर के सिंह ने किया है, उतना किसी और सांसद ने नहीं किया।
अभी हाल ही में सिंह चुनाव प्रचार के दौरान आरा ज़िले के गंगहर गाँव पहुंचे थे। गंगहर मेरा ननिहाल है तो मैंने जब अपने रिश्तेदारों से इस बारे में बात की तो पता चला कि राजपूत जाति का एकमुश्त वोट आर के सिंह को जाने वाला है हालांकि अन्य जातियां और मुसलमान सिंह के विकल्प पर भी विचार कर रहे हैं।
राजकुमार का विकल्प राजू?
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हिंदी की मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी की एक किताब है, मास्टर साहेब। मास्टर साहेब एक उपन्यास है, जिसमें कहानी है जगदीश मास्टर नाम के एक स्कूल मास्टर की, जो वामपंथी विचारधारा का होता है और सामंतवाद के खिलाफ आवाज़ उठाता है। यह एक सच्ची कहानी है जो कि आरा ज़िले के ही एक मास्टर की कहानी पर रची गई है।
इसी जगदीश मास्टर के एक परम सहयोगी थे, आर टी सिंह। आर टी सिंह फौज से रिटायर्ड थे और वामपंथी विचारधारा में यकीन करते थे।इन्हीं आर टी सिंह का नौजवान पुत्र है राजू यादव।
आरा से सिंह के खिलाफ खड़े हैं राजू यादव
राजू यादव सीपीआई (एमएल) से आरा लोकसभा सीट पर उम्मीदवार हैं। राजू यादव वामपंथ की लम्बी परम्परा से निकले हुए नेता हैं। कानून से स्नातक राजू को महागठबंधन ने समर्थन दिया है।
तेजस्वी का वामपंथ के लिए दोहरा रुख
बिहार में वामदल दो सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। एक है बेगूसराय और एक है आरा सीट। बेगूसराय से उम्मीदवार कन्हैया कुमार को तमाम कयासों के बाद भी तेजस्वी ने समर्थन नहीं दिया तो वहीं दूसरी ओर राजू यादव को आरा सीट से तेजस्वी ने पूर्ण समर्थन दिया है। इस समर्थन का पहला कारण जो निकला जा रहा है, वो है जातिगत।
राजू यादव अहीर जाति से आते हैं। तेजस्वी भी इसी जाति से आते हैं। कन्हैया चूंकि भूमिहार हैं, तो एक कारण यह भी निकाला जा रहा है कि इसलिए भी तेजस्वी ने समर्थन नहीं दिया। एक बात तो साफ है, बेगूसराय में कन्हैया को समर्थन ना देकर और आरा में राजू यादव को समर्थन देकर तेजस्वी ने बेहद बड़ा जातिगत कार्ड खेला है।
दूसरा कारण यह है कि तेजस्वी की बड़ी बहन मीसा भारती पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं। यहां भी राजू यादव के समर्थक ढेरों हैं। अब अगर आरा में राजद का वोट राजू को ट्रांसफर होगा तो तेजस्वी इस आशा में हैं कि शायद पाटलिपुत्र में सीपीआई (एमएल) का वोट मीसा को भी ट्रांसफर हो।
जब मैंने राजू यादव के बारे में आरा के ही एक दुकानदार से बात की तो उन्होंने बताया कि राजू यादव हाई-फाई नहीं है, ज़मीन का लीडर है लेकिन आर के सिंह के सामने राजू यादव कितना टिक पाएंगे, यह कह पाना मुश्किल है।
बहरहाल, इन्हीं सियासी दांव-पेंच के बीच 19 मई को आरा में वोटिंग है। कौन हारेगा, कौन जीतेगा इन सब पर तो बातें होती रहेंगी लेकिन आप अपने-अपने घरों से निकले और मतदान ज़रूर करें। एक बात और कभी आरा जाइए तो सक्कडी में तिलंगा जी का पेड़ा ज़रूर खाइए, लाजवाब है।
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