बिहार की राजधानी पटना में लोकसभा चुनाव को लेकर मतदाताओं और नेताओं में खासा उत्साह है। पटना में दो लोकसभा सीटों (पाटलिपुत्र और पटना साहिब) पर 19 मई को वोट डाले जाएंगे। आज बात इन दोनों सीटों की।
पाटलिपुत्र लोकसभा सीट
पाटलिपुत्र लोकसभा सीट 2009 के लोकसभा चुनाव में नई परिसीमन में बनी सीट है। यह एक ऐसी नई सीट है, जिसमें साढ़े सोलह लाख मतदाता हैं, यानी जनसंख्या के लिहाज़ से यह एक बड़ी सीट है। यहां लगभग पांच लाख यादव, साढ़े चार लाख भूमिहार, तीन लाख राजपूत, तीन लाख कुर्मी और डेढ़ लाख ब्राह्मण वोटर हैं।
2009 में यहां से जदयू के रंजन यादव राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को हराकर सांसद चुने गए थे। 2014 में यहां से भाजपा के राम कृपाल यादव राजद की मीसा भारती को हराकर सांसद चुने गए थे। इस बार भी यही दोनों उम्मीदवार इस सीट पर आमने-सामने हैं।
राम कृपाल यादव
किसी ज़माने में जब राजद सुप्रीमो लालू यादव का दबदबा पूरे बिहार में हुआ करता था तो दो लोग उनके बड़े करीबी हुआ करते थे। इतने करीबी कि उन्हें लालू का राम और श्याम कहा जाता था। एक थे राम कृपाल यादव और दूसरे थे श्याम रजक।

2014 में राम कृपाल यादव इस सीट से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। लालू इसी सीट से अपनी बड़ी बेटी मीसा भारती को चुनाव लड़ाना चाहते थे। इसी बात को लेकर विवाद बढ़ा, लालू नहीं माने। राम कृपाल लालू से अलग होकर भाजपा में चले गए।
शयम रजक पहले ही जदयू में शामिल हो चुके थे। देश में मोदी लहर थी। परिणाम कुछ यूं आया कि राम कृपाल यादव ने मीसा भारती को चालीस हज़ार से ज़्यादा मतों से हराया। बाद में राम कृपाल यादव केंद्र की मोदी सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री भी बने।
मीसा भारती
लालू परिवार में बहरहाल आए दिन दोनों बेटों में खटपट की खबरें आती रहती हैं। परिवार की राजनैतिक विरासत पर दोनों बेटे अपना-अपना अधिकार जताते रहे हैं। ऐसे में इस लड़ाई का एक तीसरा कोण भी है- मीसा भारती।
राजद सुप्रीमो लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं। ज़्यादातर पारिवारिक कार्यक्रमों और लालू जब तक जेल नहीं गए थे, तब तक उनके स्वास्थ्य की भी पूरी ज़िम्मेदारी इन्हीं के पास थी।

परिवार का सबसे मज़बूत और तठस्थ दीवार के रूप में देखी जाती हैं। लालू अपने दोनों बेटों से पहले इन्हें राजनीति में लेकर आए थे पर चाचा राम कृपाल ने इनके राजनैतिक करियर की शुरुआत फीकी कर दी थी। इस साल मीसा भारती फिर से पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं।
टिकट को लेकर हुआ था विवाद
कहा जाता है कि मीसा भारती को पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से टिकट देने को लेकर इनके दोनों भाइयों तेज प्रताप और तेजस्वी में मनमुटाव की स्थिति थी। तेज प्रताप चाहते थे कि मीसा को ही टिकट दिया जाए, वहीं राजद कार्यकर्ता इस सीट से मनेर विधायक भाई वीरेंद्र के लिए टिकट चाहते थे। अंत में लालू के दबाव पर मीसा को एक बार फिर पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से राजद उम्मीदवार बनाया गया।
जनता की राय
पाटलिपुत्र लोकसभा में कुल 6 विधानसभा सीटें हैं। इनमें दानापुर और फुलवारी शहरी क्षेत्र की सीटें हैं, बाकि चार सीटें- मनेर, मसौढ़ी, पालीगंज और विक्रम ग्रामीण सीटें हैं। इन 6 सीटों में सिर्फ दानापुर और फुलवारी की सीटें भाजपा और जदयू के पास हैं, बाकि सीटें राजद और महागठबंधन के पास हैं। इसका मतलब साफ है कि एनडीए का रुझान सिर्फ शहरी सीटों पर है, ग्रामीण सीटों पर महागठबंधन का ही दबदबा है।
राम कृपाल यादव के बारे में पाटलिपुत्र की जनता की राय है कि सांसद बनने से ज़्यादा काम वह सांसद ना रहते हुए करते थे, जब लालू के साथ घूमते थे। मैंने दानापुर के कुछ व्यवसाइयों से भी बात की तो वो अपने सांसद के बारे में कुछ ज़्यादा उत्साहित नहीं नज़र आए। मैं खुद भी इसी लोकसभा क्षेत्र का निवासी हूं पर मुझे अपने क्षेत्र में सांसद निधि से किया गया कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं नज़र आया। पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में ऊपर-ऊपर तो विकास नज़र आएगा पर जब आप इस क्षेत्र की गलियों में घूमेंगे तो पाएंगे कि कोई खास काम नहीं हुआ है।
बहरहाल, दोनों प्रत्याशी जी-जान से चुनाव अभियान में जुटे हैं। पिछली बार तो राम कृपाल यादव के साथ जनता की सहानुभूति थी क्योंकि लालू यादव ने अपनी बड़ी बेटी मीसा के लिए उन्हें टिकट नहीं दिया था पर इस बार हालात कुछ और हैं। एक केंद्रीय मंत्री का क्षेत्र होने के कारण लोगों की उम्मीदें बढ़ ही जाती हैं। दोनों ही प्रत्याशी यादव जाति से आते हैं, ऐसे में यह देखना अहम होगा कि इस बार पाटलिपुत्र की जनता किसे चुनती है।
अब बात करते हैं पटना साहिब लोकसभा सीट की
पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र की लड़ाई इस बार कांटे की होगी। लगभग बीस लाख मतदाताओं वाले इस क्षेत्र से 2014 में भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा सांसद चुने गए थे। इस बार बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा छोड़कर कॉंग्रेस में शामिल हो गए हैं।
इस सीट पर इसबार इनका मुकाबला भाजपा के रविशंकर प्रसाद से होगा। अभी हाल ही में पटना में राहुल गांधी ने शत्रुघ्न सिन्हा के समर्थन में रोड शो भी किया था। शत्रुघ्न सिन्हा पिछले दो बार से 2009 और 2014 से लगातार पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र से जीतते आ रहे हैं।
शत्रुघ्न सिन्हा
फिल्मों से राजनीति में आए शत्रुघ्न सिन्हा शुरू से ही भाजपा में शामिल रहे थे मगर पिछले कुछ वर्षों में यह भाजपा के अंदर मोदी विरोध की एक नई पहचान बनकर उभरे हैं।

शत्रुघ्न ने 2018 में यशवंत सिन्हा के साथ तेजस्वी यादव द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भी शिरकत की थी, उसके बाद से ही भाजपा से उनका टिकट कटा हुआ माना जाने लगा था। सिन्हा मोदी पर जमकर वार करते देखे जाते रहे हैं। चुनाव के ठीक पहले सिन्हा भाजपा छोड़कर कॉंग्रेस में शामिल हो गए थे।
रविशंकर प्रसाद
रविशंकर प्रसाद केंद्रीय कानून मंत्री हैं। काफी मशहूर वकील रहे हैं। लालू यादव के चारा घोटाला और अयोध्या के राम मंदिर विवाद में भी पहले यही वकील थे। रविशंकर प्रसाद का राजनैतिक करियर 1970 के दशक में पटना यूनिवर्सिटी के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुआ।

पिता ठाकुर प्रसाद जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। 2000 रविशंकर प्रसाद पूर्ण रूप से राजनीति में आ गए। हमेशा से राज्यसभा में ही आते-जाते रहे हैं तो चुनावी राजनीति में अनुभव ना के बराबर है। जब भाजपा ने शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट काटकर इन्हें पटना साहिब भेजा तो भाजपा कार्यकर्ता काफी गुस्से में दिखे और एयरपोर्ट पर हंगामा भी किया।
जनता की राय
बीस लाख मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में किसी एक जाति की बहुलता तो नहीं है पर कायस्थ वोटर औरों के मुकाबले ज़्यादा हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसमें से पांच सीटें एनडीए के पास हैं और एक सीट पर राजद का कब्ज़ा है।
जब मैंने कंकड़बाग इलाके के शिवाजी पार्क के पास कुछ लोगों से बात की तो पता चला, बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा पटना में कम और मुंबई में ज़्यादा देखे जाते हैं। क्षेत्र में इनका दौरा ना के बराबर हुआ है। गांधी मैदान वाले इलाके में चले जाइए तो लगता ही नहीं है कि आप शहर के सबसे बड़े मैदान के पास हैं।
पटना बिहार की राजधानी तो है पर इस शहर में राजधानी जैसी कोई बात नहीं है। बेतरतीबी से बिखरी हुई दुकानें और कचरे का ढेर अब इस शहर की पहचान बन चुका है। आज भी इस शहर में बरसात में जलजमाव की स्थिति बन जाती है। सांसद तो चुनकर दिल्ली-मुंबई चले जाते हैं और अपने पीछे छोड़ जाते हैं बस धुआं और टूटे पड़े स्ट्रीट लाईट।
पटना मांगे स्थनीय सांसद
बहरहाल, पटना की मांग बस इतनी है कि इस बार कोई ऐसा सांसद मिले जो यहां पर ज़्यादा रहे और काम करे। बिहारी बाबू की ‘खामोश’ वाली छवि और उनकी इमोशनल अपील इस बार जनता को कितना लुभा पाती है, यह देखना अहम होगा।
साथ ही यह जानना भी ज़रूरी होगा कि भाजपा को शत्रुघ्न सिन्हा के नाम पर वोट पड़ते थे या शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा के नाम पर। फिलहाल परिणाम जो भी हो, आप अपने घरों से निकले और वोट डालकर लोकतंत्र के इस महापर्व में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराएं।
The post पटना की दोनों सीटों पर कल जनता किसके नाम लिखेगी जीत? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.