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Explained: कितना विश्वसनीय होता है एग्ज़िट पोल

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कल से ही आपने यह खबर ज़रूर पढ़ी होगी कि पिछले 21 सालों से एग्ज़िट पोल में बीजेपी ही जीतती आई है। इन आंकड़ों के सामने आने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या एग्ज़िट पोल पर विश्वास किया जाना चाहिए?

सोर्स- IANS (https://yka.io/2HqQfb8)

अगर एग्ज़िट पोल में लगातार बीजेपी के जीतने की खबर से आप वाकिफ नहीं होंगे तो ऊपर के आंकड़ों को देख सकते हैं, जिसमें अलग-अलग चुनावों के एग्ज़िट पोल दिखाए गए हैं।

अब आते हैं इस साल के एग्ज़िट पोल पर, तो इस बार भी स्थिति जस-के-तस है। एग्ज़िट पोल ने वह परंपरा वापस से निभाई है। इस बार भी अमूमन एजेंसियों के एग्ज़िट पोल में NDA की ही बढ़त दिखाई दे रही है, मतलब इस हिसाब से वापस से बीजेपी ही सरकार बनाने वाली है।

सोर्स- https://yka.io/2VSFs2n https://yka.io/2VNlq9o

लेकिन जब वापस ऊपर के आंकड़ों पर आते हैं तो इस  बार के एग्ज़िट पोल पर एक बार सवाल ज़रूर खड़ा होता है कि यह कितना विश्वसनीय है और कितना नहीं। क्योंकि इन एग्ज़िट पोल्स ने उस वक्त भी बीजेपी को जिताया है जिस वक्त वास्तविक रिज़ल्ट में बीजेपी सरकार बनाने में नाकामयाब रही है।

अब सवाल उठता है कि इस तरह की स्थिति क्यों है? क्या एग्ज़िट पोल पर विश्वास किया जाना चाहिए या नहीं? हम यह तो बिलकुल भी नहीं कह सकते हैं कि एग्ज़िट पोल पर पूरी तरह से विश्वास नहीं किया जा सकता लेकिन कुछ प्वाइंट्स हैं जो इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते  ज़रूर हैं।

सबसे पहले क्या है एग्ज़िट पोल-

  • एग्ज़िट पोल चुनाव के दौरान मतदाताओं के रुख का आंकलन है। जो अलग-अलग संस्थानों द्वारा अलग-अलग तरीकों के आधार पर किया जाता है।
  • एक प्रश्नावली के आधार पर अलग-अलग वोटर्स से सवाल करके उनकी राय जानी जाती है। यह किसी रूप में भी हो सकता है, फेस-टू-फेस भी और फोन पर भी।
  • इलेक्शन कमनीशन के अनुसार, कोई भी एजेंसी, चैनल या वेबसाइट फाइनल फेज़ के बाद ही एग्ज़िट पोल टेलिकास्ट कर सकती है।

इसकी प्रक्रिया, जो उठाती है इसकी विश्वसनीयता पर सवाल-

  1. सैंपल साइज़

एग्ज़िट पोल के सैंपल साइज़ की बात करें तो 1996 लोकसभा चुनाव में इसका सैंपल साइज़ 17,604 था। जो 2004 के चुनाव के समय से थोड़ा बढ़ा है। इस चुनाव (2019) में दावा है कि कई एजेंसियों के सैंपल साइज़ लाख के करीब भी थे।

अब यहां दो बातें निकलकर आती हैं-

  1. छोटे सैंपल साइज़ से एक बड़े वर्ग की राय को नज़रअंदाज़ किया जाना।
  2. बड़े सैंपल साइज़ में कई बार होती है धांधली

छोटा सैंपल साइज़- 

छोटे सैंपल साइज़ में कई बार बड़े वर्ग की राय को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। कुछ लोगों के बीच सर्वे करके एक अनुमानित परिणाम निकाल दिए जाते हैं, जो सही रुझान नहीं बता पाते हैं।

बड़ा सैंपल साइज़-

बड़ा सैंपल साइज़ एक अच्छी पहल है, इसमें एक बड़े वर्ग की राय शामिल की जाती है, जिससे तुलनात्मक रूप में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। समस्या यहां यह आती है कि बड़े सैंपल साइज़ में धांधली की गुंजाइश काफी हद तक होती है। न्यूज़ चैनल्स और वेबसाइट्स के प्रेशर की वजह से अगर एजेंसियां बड़ा सैंपल साइज़ सेलेक्ट करती हैं तो वर्क लोड भी ज़्यादा होता है। ऐसे में कई बार सर्वे फर्ज़ी दिखा दिए जाने की संभावना होती है।

झारखंड के एक पत्रकार के अनुसार,

स्टूडेंट लाइफ में एक एजेंसी के लिए ओपिनियन पोल के आंकड़े जुटाने का काम मैंने भी किया था। यह बात सही है कि उस दौरान कुछ फॉर्म ज़मीन पर सर्वे करके भरे थे और बाकी को उसी ट्रेंड के हिसाब से घर में भर लिया था।

 2. पोलिंग बूथ के बाहर एग्ज़िट पोल-

कई बार पोलिंग बूथ के बाहर किया गया एग्ज़िट पोल का सर्वे गलत परिणाम दिखाता है। वजह, कई लोग पोलिंग बूथ के बाहर अपने मत का खुलासा नहीं करना चाहते। इसके साथ ही कई बार उनसे अचानक सवाल किए जाने पर वे जल्दबाज़ी में सही जवाब नहीं दे पाते हैं।

how exit polls works and How reliable are they

3. गुप्त मतदान

कई बार जो सैंपल साइज़ निर्धारित की जाती, उसमें कई ऐसे लोग निकल आते हैं जो अपना मतदान गुप्त रखने में विश्वास रखते हैं। वह किसी भी रूप में यह बताना पसंद नहीं करते कि वह किसे वोट देंगे। इससे होता यह है कि उस सैंपल साइज़ में कई जवाब नहीं मिलते और अगर वह व्यक्ति A पार्टी को मत देता है तो उस पार्टी की वह संख्या एग्ज़िट पोल के परिणाम में शामिल नहीं हो पाती है।

4. क्षेत्रीय दबंगई की राजनीति

हमारे यहां कई क्षेत्रों में किसी खास पार्टी का दबदबा होता है और वहां उस पार्टी के किसी खास नेता की गुंडई चलती है। ऐसे में मान लीजिए कि किसी इलाके में B पार्टी का दबदबा है और B पार्टी के किसी नेता का वहां वर्चस्व चलता है। अब कोई व्यक्ति अगर उस B पार्टी को वोट ना देकर A पार्टी को वोट देने वाला है लेकिन वह यह बात खुलकर कभी नहीं बताएगा क्योंकि उसे पता है कि ऐसे में उसके साथ गुंडागर्दी भी हो सकती है या उसे जबरन B पार्टी में वोट दिलवाया जा सकता है। ऐसे में वह भले ही A पार्टी को वोट देने वाला है मगर वह एग्ज़िट पोल के सर्वे में B पार्टी का ही नाम लेगा।

बहरहाल, 23 को फाइनल रिज़ल्ट आने ही वाला है, फिर साफ हो जाएगा कि इस बार का एग्ज़िट पोल कितना विश्वसनीय है और कितना नहीं।

The post Explained: कितना विश्वसनीय होता है एग्ज़िट पोल appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.


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