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“सरकारी खामियों को छुपाने का ज़रिया है निजीकरण”

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यूं तो दशकों पहले ही भारत में उदारीकरण और आर्थिक सुधारों के चलते सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई थी लेकिन रेलवे और बैंक को निजी हाथों में देने का साहस किसी सरकार में नहीं था। अभी हाल ही में जिस तरह से विश्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 6% ही रहने की बात की है, उसने प्रत्येक अर्थशास्त्रियों को कहीं ना कहीं सोचने पर मजबूर कर दिया है। तथाकथित मंदी के भय से...

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