जब से देश आज़ाद हुआ, गाँव आबाद हुआ तब से रास्ता नहीं दिखा। साल दर साल गुज़रते रहे उम्मीद बनी रही। इसी बीच सूबे के मुखिया वोट के जुगाड़ में ही सही लेकिन रास्ता भटक कर पड़ोस के गाँव से होकर गुज़रने वाले मुख्य मार्ग तक पहुंचे तो आशान्वित हो कर गाँव वाले अपना दुख-दर्द बयां करने पहुंचे। लौटे तो चेहरे पर खुशी और हाथों में आश्वासन के लडडू थे। सूबे के मुखिया ने भरोसा तो दे दिया था लेकिन वक्त गुज़रने का...
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