चुनाव का मौसम आते ही वो नियम शुरू हो जाते हैं जिसकी इजाज़त ना संविधान देता है ना ही हमारे देश का कानून। प्रांतीय चुनावों के कारण यह सीजन पूरे साल भर रहता है। इसमें होने वाले नियम राजनीतिक व्यवस्था और चुनाव प्रचार का हिस्सा बन गए हैं, क्योंकि एक तरफ नेताओं को खरीदने-बेचने का बाज़ार लगता है, विपक्षी नेताओं के घरों और दफ्तरों पर छापे मारे जाते हैं, तो दूसरी ओर मतदाताओं को लुभाने के लिए ज़ोर-शोर स...
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