बॉलीवुड फिल्मों के कंटेंट के गिरते स्तर ने भी हिंदी भाषी दर्शकों को क्षेत्रीय सिनेमा की ओर रुख करने का अवसर दिया है। साउथ सिनेमा की इस आंधी ने 'कांतारा - अ लीजेंड' के माध्यम से भारत को ऋषभ शेट्टी के रूप में एक नया पैन-इंडिया सितारा दिया है। आज से ठीक एक महीने पहले यानी 14 अक्टूबर को कन्नड़ फ़िल्म 'कांतारा' हिंदी डब में रिलीज हुई थी। कांतारा के ट्रेलर से मैं इतना चकित हुआ था कि मैंने इसे इसके असल भाषा में ही देखने का मन बनाया था लेकिन व्यस्तताओं के चलते समय नही निकाल पा रहा था।
ऋषभ शेट्टी के अभिनय और निर्देशन
अगर आप इस लेख को पढ़ रहे हैं तो आपने कांतारा फ़िल्म का नाम ज़रूर सुना होगा और आपने कांतारा का नाम सुना है यानी आपने इसकी तारीफें भी सुनी होंगी। मैं बस इतना कहूंगा कि जो आपने सुना है वो बिल्कुल सहीं सुना है। और जिन्होंने इस फ़िल्म को बड़े पर्दे पर देखा है वे ऋषभ शेट्टी के अभिनय और निर्देशन को कई सालों तक याद रखेंगे। वह बेमिसाल अनुभव लेकर सिनेमाघरों से बाहर निकले होंगे और अगले एक सप्ताह तक कांतारा (रहस्यमय वन) में विचरण कर रहे होंगे।
कुछ दिनों पहले फ़िल्म निर्देशक अनुराग बसु ने रायपुर के एक फ़िल्म फेस्टिवल में अपना अनुभव साझा किया था। अनुराग ने कहा था कि, एक बॉलीवुड फिल्म बनाने के लिए आपको एक ऐसी कहानी खोजनी पड़ती है, जो ओड़िसा के दर्शकों को भी उतनी पसंद आए जितनी पंजाब के दर्शकों को आएगी। वे कहते हैं एक क्रिएटिव पर्सन होने के नाते उनके दिमाग में रोज़ ढेरों कहानियां पनपती हैं लेकिन वे ऐसी कहानी छांटते हैं, जिसके लिए प्रोडक्शन हाउस बजट दे।
संस्कृति से जोड़ सकने वाली कहानियां
अनुराग के इन्ही दो बातों से विपरीत जाकर कन्नड़ सिनेमा के ट्रिपल आर (RRR) यानी रक्षित शेट्टी, ऋषभ शेट्टी और राज शेट्टी ने सिनेमा लवर्स के दिलों में अपनी जगह बनाई है। ऋषभ शेट्टी ने अपने साक्षात्कार में बताया कि वे एक ऐसा कंटेंट बनाते हैं जो उनके लोगों की संस्कृति से जुड़ी हो और उनके दिल से निकली हो।
ऋषभ अपने फिल्मों की पटकथा को दूसरे प्रोडक्शन हाउस के पास इसलिए लेकर नही जाते, क्योंकि वे अपनी कहानी के साथ छेड़छाड़ नही चाहते, इन्हीं बातों का पालन करते हुए उन्होंने कांतारा लिखी और उसका निर्देशन भी किया और नतीजा सबके सामने है।
कांतारा के क्लाइमेक्स में ऋषभ शेट्टी द्वारा किया गया अभिनय, बम्बई में हीरो बनने आए युवाओं के सिलेबस में शामिल कर देना चाहिए। एक्शन और एक्टिंग का ऐसा अनूठा मिश्रण शायद ही किसी फिल्म में दिखाया गया हो।
ऋषभ शेट्टी और अपरिचित

रणबीर कपूर की फ़िल्म ब्रम्हास्त्र में नायक का नाम 'शिवा' होता है और उसका अग्नि के साथ रिश्ता होता है। कांतारा में भी नायक का नाम 'शिवा' है और इसका भी आग के साथ कनेक्शन है। ऋषभ ने कांतारा के क्लाइमेक्स में अपने किरदार और आग का ऐसा संगम किया कि वह दर्शकों के लिए विसुअल ट्रीट बन गया।
कांतारा के अन्य फाइट सीन में कहानी का नायक बरसात में गुंडों की पिटाई करता है। उस दृश्य में भी शिवा और आग का मिलन हुआ है। क्लाइमेक्स में ऋषभ शेट्टी को देखकर मुझे विक्रम की 'अपरिचित' की याद आ गई थी।
कांतारा की ख़ासियत उसकी संगीत और कहानी के दैव की आवाज़ भी है। ऋषभ ने इंटरव्यू में लोगों से प्रार्थना की कि दर्शक फ़िल्म देखने के बाद दैव की आवाज़ की नकल न करें, क्योंकि यह स्थानीय लोगों की संस्कृति से जुड़ी हुई है। कांतारा के हिंदी डब वर्जन में दैव के संवाद मूल भाषा में रखे गए हैं, उन्हें नही डब किया गया है, जो दर्शकों को फ़िल्म के साथ गहरा संबंध स्थापित करने में सहायता करती है।
पैसा वसूल अभिनय
कांतारा के शुरुआती और अंत के हिस्सों को छोड़ दें तो बीच के कुछ दृश्य नॉर्मल साउथ फिल्मों की तरह है। जहां हीरो बेवड़ा है, वह जबरदस्ती दूसरों से उलझता है। उसका एक दोस्त लड़कीबाज़ है। साउथ फिल्मों के नायक और उनका लड़कियों की कमर के प्रति आकर्षण, इस फ़िल्म में भी जारी है। इस फ़िल्म को लिखने में ऋषभ शेट्टी के उन्हीं दोस्तों ने साथ दिया है जो फ़िल्म में भी उनके दोस्त बने हैं।
अगर आपने अभी तक कांतारा नही देखी है तो सच में एक बवाल सिनेमा मिस करने जा रहे हैं। समय ना हो तो निकालिए और नज़दीकी सिनेमाघर में जाकर ज़रूर देखिए। फ़िल्म के क्लाइमेक्स में ऋषभ का अभिनय पैसा वसूल से भी ऊंचे दर्जे का है। आशा है पैन-इंडिया स्टार बन जाने के बाद अब ऋषभ शेट्टी बिग बजट फिल्मों की ओर ना भागकर कांतारा जैसी दिल से निकली फ़िल्म बनाएंगे।