

मनुष्य की प्रारंभिक मूलभूत आवश्यकताओं में शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल आता है। लेकिन क्या बिहार के इतने वर्ष के मुख्यमंत्री सुशासन बाबू नीतीश कुमार यह दावा कर सकते हैं कि बिहार के प्राथमिक स्तर पर चिकित्सा और डाइग्नोसिस की सुविधा उपलब्ध है? उत्तर है नहीं। उसका दुष्परिणाम है कि बिहार की आम जनमानस आए दिन गंभीर बीमारियों को डाइग्नोसिस के अभाव में बेपरवाह तरीकों से छोड़ देते हैं और अकाल मृत्यु के कोख में समा जाते हैं।
मेरे पिता बने इस स्वास्थ्य व्यवस्था का शिकार
मेरे पिता की स्वास्थ्य यात्रा भी इसी की एक बानगी है। मेरे पिता श्री फारूक अहमद (सेवानिवृत्त शिक्षक, बिहार मदरसा एजुकेशन बोर्ड, पटना) अपने आप को सेवानिवृत्त होने के पश्चात अपने गांव के घर पर प्रवास करने लगे। 2021 के सितंबर माह से उनके पेट में हल्का हल्का दर्द होने लगा। पहले तो उनको लगा कि यह साधारण सा दर्द है जो सम्भवतः गैस संबंधित समस्या के कारण है। लेकिन दर्द ठीक न हुआ तो उन्होंने गांव के ही अति प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के आयुष डॉक्टर से दिखाया। लेकिन उन्हें डाइग्नोसिस के अभाव में कुछ समझ में नहीं आया। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में रेफर कर दिया लेकिन वहाँ भी डाइग्नोसिस के अभाव में उन्होंने भी हाथ खड़ा कर दिया।
ख़राब स्वास्थ्य व्यवस्था ने पिताजी की जान ले ली
अतः उन्हें एक निजी अस्पताल में एडमिट कराया तो डाइग्नोसिस के बाद उन्होंने बताया कि आपके पिताजी को गॉल ब्लैडर में गाँठ है और उसमें सूजन है। कैंसर की संभावना है। आप पटना स्थित IGIMS हॉस्पिटल में पूरा चेक अप करवाइए। IGIMS के एक महीने के जाँच के उपरांत उन्हें कैंसर की पुष्टि हुई। उसके पश्चात हमारी तो नींद ही उड़ चुकी थी। जब हमने IGIMS स्थित स्टेट कैंसर हॉस्पिटल में उन्हें एडमिट कराया तो वहाँ जाँच के उपरांत यह बताया गया कि आपके पिताजी को चूँकि गॉल ब्लैडर में बीमारी है तो उसे गैस्ट्रो सर्जरी विभाग में जाकर ऑपरेशन करवाना होगा। जब गैस्ट्रो सर्जरी विभाग में गया तो वहाँ के विभागाध्यक्ष ने बताया कि चूँकि मर्ज़ फैल चुका है तो आपको 50% ही चांस है ऑपरेशन का और 50% चांस नहीं है ऑपरेशन का। ऐसी स्थिति में पिताजी अपने क़रीबी डॉक्टर से सलाह करने के बाद नई दिल्ली स्थित ILBS हॉस्पिटल जाने का निर्णय लिया। दिल्ली का ख़र्च और हॉस्पिटल का बिल ने हमारे पूरे परिवार को तोड़कर रख दिया। ख़ैर पूरे 7 महीने तक उनका इलाज दिल्ली में चला और जब मेरे पिताजी दिल्ली से ऊब गए तो वह घर आ गए। लेकिन उनका उपचार चलता रहा। बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित SKMCH Campus (डॉ. होमी भाभा कैंसर अस्पताल & रिसर्च इंस्टीट्यूट) में उनका बचा हुआ इलाज हुआ। 10 जनवरी 2023 को उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली और बिहार के ख़राब स्वास्थ्य व्यवस्था ने उनके जीवन को निगल गया।
पिताजी के जाने के बाद भी बिहार की नहीं बदली स्थिति
आज भी बिहार में ग्रमीण क्षेत्रों में कुछ भी बदला नहीं है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति बद से बदतर है। वहाँ न डॉक्टर है न नर्स है। न ही वहां किसी भी प्रकार की जांच की सुविधा उपलब्ध है। हाल में ही बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ तो तेजस्वी यादव ने स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभाली जिससे बिहार को उम्मीद मिली है। लेकिन तेजस्वी यादव की मिशन 60 डे शहर स्थिति जिला की सदर अस्पताल को सुदृढ़ीकरण करने की है। उसमें में भी घोर कमी है। आज हमारे गांव में 10 से अधिक मरीज़ कैंसर के है। और वह जीवन की अंतिम सांस लेने की तैयारी में है। सभी बिहार से बाहर इलाज करवा रहे हैं।
आवश्यकता है कैंसर की स्क्रीनिंग करने की
बिहार एक ग़रीब और बीमारू राज्य है। लोगों की आर्थिक स्थिति आम तौर आज भी ख़राब ही है। पलायन सबसे अधिक है। शिक्षा/स्वास्थ्य/रोजगार के क्षेत्र में मिशन मोड पर काम करने की आवश्यकता है। बिहार में जरूरत है अधिक कैंसर अस्पताल की और जहाँ भी अस्पताल है वहां व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए। साथ ही साथ सभी अस्पताल में कैंसर बीमारी का स्क्रीनिंग होने की सुविधा होनी चाहिए ताकि इस बीमारी का पता पहले स्टेज में ही लग जाए और उपचार हो सके।