

सदियों से असमानता की दुनिया में जूझता आ रहा समलैंगिक समाज आज इस मॉडर्न दुनिया में अपने लिए समानता की सीढ़ी नहीं बना पाया। इसके पीछे जो सबसे बड़ी वजह है वो है समाज का रूढ़िवादी होना। वैसे तो समाज इस समुदाय को तुच्छ नज़रों से देखता आ रहा है और शायद ही भविष्य में कभी इनको अपना पाएगा। समलैंगिक समुदाय इन दिनों बहुत सारी समस्याओं से जूझ रहा है जिसमें बेरोजगारी, असमानता प्रमुख है। इसी बीच समलैंगिक शादी को समानता के अंतर्गत लाने के लिए भी इस समुदाय से लोग आगे आ रहे हैं। मगर देश में रूढ़िवादी विचारधारा यहां भी उनके सपने और उनकी सोच को कुचल रही है।
याचिकाकर्ताओं के मांग को असंवैधानिक बता देना कितना जायज़ है
समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की पांच जजों की संवैधानिक बेंच इन पर सुनवाई कर रही है। सीजेआई चंद्रचूड ने कहा कि वो पहले इन मामलों को समझने के लिए याचिकाकर्ताओं को सुनना चाहेंगे। याचिकाकर्ता को सुनने के बाद ही वो सरकार का पक्ष सुनेंगे। वहीं केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं पर ही सवालों की बौछार डाल दी। सरकार की तरफ से जिन वकीलों को नियुक्त किया गया है, वे सभी इस प्रस्ताव को असंवैधानिक करार दे रहे हैं।
LGBTQ+ लोगों को भी है समानता का अधिकार
वहीं जब याचिकाकर्ताओं की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अपनी बात रखनी शुरू की, तो उन्होंने साफ शब्दों में किसी विशेष समुदाय को केंद्र में रख कर नहीं बल्कि मानवता और समानता को एक-दूसरे का पहलू बना कर अपनी बात को सभी के समक्ष पेश किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह समाज की बाकी इकाइयां समानता का अधिकार रखती हैं इसी तरह याचिकाकर्ता भी अधिकार रखते हैं कि उनके साथ भी समानता का व्यवहार किया जाए। एक समय था जब कानून की धारा 377 अपराध की श्रेणी में आता था मगर अब ऐसा नहीं है। मुकुल रोहतगी का साफ इशारा था कि जैसे सभी को समानता का हक़ मिलता है, वैसे ही इस समुदाय के लोगों को भी शादी करने और उसको मान्यता दिलवाने का हक़ होना चाहिए।
क्या LGBTQ+ समुदाय धर्म से बहार हैं
केंद्र सरकार अपने हलफ़नामे में जिक्र कर रही है कि इसमें सभी राज्यों की मर्जी भी शामिल होनी चाहिए और यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है जिसके तहत हिन्दू और मुस्लिम दोनों की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। हमारा सवाल यहां पर ये उठता है कि जब इस समुदाय के लोगों को घर से धक्के देकर बाहर निकाला जाता है, कहीं पर जॉब नहीं मिलती, समुदाय भीख मांगने पर आतुर हो जाता है तब आपका धर्म कहां जाता है और धर्म को चलाने वाले पाखंडी। सेम सेक्स मैरिज एक्ट से समाज में समुदाय को अपनी प्राइवेसी, सुरक्षा और भविष्य को सिक्योर करने का मौका मिलेगा। वहीं इस बात के ख़िलाफ़ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल जी भी यही बयान देते हुए नज़र आ रहे हैं कि सेम सेक्स मैरिज किसी भी कीमत पर मान्य नहीं है। वास्तव में समुदाय के सभी 'सो कॉल्ड' लिबरल और समानता का बखान बखारने वाले लोग ही आज समलैगिंक समुदाय के भविष्य के लिए खतरा बने हुए हैं।
प्राचीन काल से चला आ रहा है समलैंगिक रिश्ता
समुदाय के लोग समेत याचिकाकर्ता की बस एक ही मांग है कि हमको भी सामान्य समझा जाए हम भी समानता के अधीन आते हैं। जो लोग इस समानता की पहल को लेकर तरह तरह की अटकलें लगा रहे हैं और बता रहे हैं कि ये प्राकृतिक के ख़िलाफ़ है। मैं उनसे ये पूछना चाहूंगा कि हम क्या अप्राकृतिक हैं? समलैगिंक समुदाय के पास आत्मा नहीं, या फिर उनके पास भी आपकी तरह कोमल ह्रदय नहीं। कुछ लोग बयानबाजी कर रहे हैं कि ये पश्चिमी देशों का तौर तरीका यहां भारत जैसे देश में नहीं चलेगा तो वो लोग ये जान लें कि खुजराहो के मंदिर में समलैगिंक मूर्तियां आज भी जिंदा हैं और गवाही देती हैं कि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं और न ही कोई नया चलन है, बल्कि यह कई सौ साल से चली आ रही सभ्यता का अंग है।
लोकतंत्र में विश्वगुरु माना जाने वाला भारत आज अपंग होता दिख रहा है। जिस समानता का ढ़िढोरा भारत सारे विश्व में बजाता आया है वहां आज कई समुदाय ऐसे भी हैं जो अपने देश में ही समानता की भीख मांगते हुए नज़र आते हैं। व्यक्तिगत तौर पर मुझे दुःख है और साथ ही गुस्सा भी है कि समुदाय को आज तक ये मॉडर्न ज़माना हजम नहीं कर पाया।