

हमने प्यार किया, तब किया जब कोई नहीं था
कोई नहीं था हम जैसा, या हमें समझने वाला
हमारी भावनाओं को उजागर करने वाला, ना साथ देने वाला
हमारे आँखों का मिलना और मुसकुराना सिर्फ हमारे बीच में था ,
पता नहीं था कब हमारे हाथों में हाथ आ गए
कब दूरियाँ मिटने लगी, और रात भर जागकर फोन पर बात होने लगी
कुछ अलग नहीं था हमारा प्यार, बल्कि सबके जैसा था
एक सी सोच और जमाने से लड़ने वाला था
छुप-छुप कर मिलना और अपनों में ही डर के साथ जीना
सब कुछ जैसा लैला-मजनूँ और हीर-रांझा में था
वहीं एहसास और वही ठिठोलापन जो सब में दिखता है, वैसा ही था
पर क्यों हमारे प्यार के चर्चे संसद में हो रही है?
क्यों कोर्ट के दरवाजें खटखटाये जा रहे हैं?
हमें कभी नहीं मिलने का फरमान सुनाये जा रहे हैं
क्या मांगा हैं हमने जमाने से, बस एक कवि की कविता में हम दोनों को पाया है
संसद क्यों रोक लगा रही है? क्या गलत किया हमने तुम्हें चुन कर?
क्या उन्होंने कभी प्यार नहीं किया?
क्या इनके प्यार में और हमारे प्यार में भिन्नता है?
हमारे प्यार की चर्चा क्यों हो रही है संसद में?