

पिछले कई दिनों से पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर के सामने प्रदर्शन कर रहे थे। उनमें कई अंतरराष्ट्रीय पहलवान जैसे विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया भी शामिल हैं। महिला पहलवानों ने बीजेपी सांसद और रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट ब्रजभूषण शरण सिंह पर कथित रूप से यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है।
जंतर-मंतर के सामने से पुलिस द्वारा जिस तरह पहलवानों को हटाया गया, वह काफी निराशाजनक था। कुछ दिन पहले भी दिल्ली पुलिस पर सवाल उठे थे जब उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्राओं को ज़बरदस्ती धरने से उठाया जो पहलवानों के हक में धरने पर बैठी थी।
लोकतंत्र के नाम पर राजतंत्र
इन घटनाओं को देखते हुए लगता नहीं है कि देश में लोकतंत्र के नाम पर कुछ बचा भी है। दो दिन पहले जब पहलवान अपने मेडलों को गंगा में प्रवाहित करने के लिए हर की पौड़ी पर पहुंचे, तब सत्ता पार्टी के किसी सांसद या मंत्री ने उन्हें रोकने की कोशिश तक नहीं की। जब यही पहलवान राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय पदक हासिल करते हैं, तो सबसे पहले प्रधानमंत्री ट्वीट करके उन्हें बधाई देते हैं। उन्हें बताते हैं कि किस तरह उन्होंने भारत का नाम रोशन किया। इतना ही नहीं सभी खिलाड़ियों को अपने बेटे- बेटी के समान मानते हैं।
पहलवानों के आरोपों पर क्यों नहीं हुई कार्रवाई
जब उनके बेटों-बेटियों ने इतना बड़ा कदम उठाया तो उन्होंने अपने बच्चों से बात तक करना जरूरी नहीं समझा। वो तो अपने नए संसद भवन में मग्न हैं। ना ही भारत की प्रथम नागरिक (राष्ट्रपति जी) ने पहलवानों की सुध ली। कुछ लोग ये भी बोलते हैं कि महिला पहलवानों का आरोप गलत है और प्रदर्शन इसलिए कर रहें हैं ताकि नेशनल खेलने की सख्ती हटवा सके। बात चाहे जो भी हो , सही या गलत, कोर्ट की मदद से सब साबित हो ही जाएगा। लेकिन सरकार की ये जिम्मेदारी बनती है कि एक बार उनसे मुलाकात करने की बात जरूर करें।
दिल्ली पुलिस के बर्बरता पर हो कार्रवाई
साथ ही दिल्ली पुलिस पर भी कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि जिस तरह का व्यहवार उन्होंने पहले दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्राओं के साथ और फिर अंतर्राष्टीय खिलाड़ियों के साथ किया, वो देश की हर महिला के लिए बहुत शर्मसार है। एक बात तो मेरे ख्याल से सभी भारतीय को माननी चाहिए कि कोई भी महिला इस तरह के बड़े आरोप ऐसे ही किसी पर नहीं लगा सकती क्योंकि ये उसके चरित्र और समाज में उसकी इज्ज़त पर भी सवाल खड़ा करती है। फिर ये तो अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। गौर कीजिएगा।
नशा कुर्सी का ऐसा भी क्या, कि तुझे लोकतंत्र याद नहीं, क्या हुआ तेरा वादा, वो शपथ, वो इरादा।