

इस देश में विचारों में अंतर इस बात से प्रतीत होता है कि उनकी विचारधारा इस भूखंड को लेकर नहीं बल्कि एक अलग ही दुनिया को लेकर है, जो समाज में वैमनस्यता को बढ़ावा देती है। हम बात कर रहे हैं भारत की तथाकथित राजनीतिक/सामाजिक/सांस्कृतिक विचारधारा की जो इस देश को समय -समय पर बेचैन कर देती है। जब-जब देश में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए (NDA) की सरकार बनती है तभी अचानक से देशभर में छद्म राष्ट्रवाद उभर कर सामने आ जाता है।
हिन्दूराष्ट्र विचारधारा में लोकतंत्र एक मज़ाक
इस विचारधारा में संविधान/लोकतंत्र एक मज़ाक का पात्र हैं क्योंकि उसके(छद्म राष्ट्रवादी) के लिए यह सबसे ज़्यादा बाधक(संविधान/लोकतंत्र) तत्व है। इनके विचारधारा में दलित/ अल्पसंख्यक/ महिला/ आदिवासी/ अन्य पिछड़ा वर्ग की जगह ही नहीं है। ये जाति के बदले आरक्षण समाप्त करने की बात करती हैं। सनातन धर्म के अलावा सभी धर्मालंबियों को विदेशी मानते हैं। हिंदू राष्ट्र की संकल्पना मान लिए बैठे हैं, तो ज़ाहिर है कि इससे लोकतंत्र की नींव कमजोर हो रही है।
कौन है छद्म राष्ट्रवाद के पोषक
इसके कई संगठन हैं लेकिन आरएसएस इसकी मातृ संगठन है जिसकी स्थापना 1925 में आज़ादी से पूर्व में हुआ था। इसके कई अंगीभूत इकाई है जिसमें विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय किसान यूनियन,मुस्लिम राष्ट्रीय मंच इत्यादि। इसके कई नेता जो इस संगठन के सिरमौर हुए उनमें से प्रमुख हैं हेडगेवार,सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी तथा वर्तमान में मोहन भागवत है।
आरएसएस अपने आप को एक सांस्कृतिक तथा वैचारिक संगठन बताता है। जिसका मुख्यालय नागपुर(महाराष्ट्र) है। इसके छद्म राष्ट्रवादी विचार विचार से देश का आमजन (धर्मनिरपेक्ष सनातनी, अल्पसंख्यक समुदाय, दलित समाज, आदिवासी समुदाय, महिला, अन्य पिछड़ा वर्ग) कथित रूप से भयभीत रहता है।
छद्म राष्ट्रवादी का उदय
आज़ादी से पहले से ही हिंदू राष्ट्रवाद/हिन्दू जागृति इत्यादि शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग करके ध्रुवीकरण की कोशिश जारी थी। लेकिन इसको पूरी तरह उभार कर इसकी विचारधारा की तथा आरएसएस की अनुसांगिक इकाई भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र सरकार में आई। तबसे छद्म राष्ट्रवाद का उभार प्रारंभ हो गया। जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार ने खुले मंचों से छद्म राष्ट्रवाद की स्वीकृति दी तथा इस तरह के संगठनों को प्रश्रय दिया तबसे इस तरह के संगठनों का मनोबल बढ़ता गया।
इसका दुष्परिणाम यह है कि आज संपूर्ण भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के ऊपर हिसंक हमले हो रहे हैं, और उन्हें मॉब लिंचिंग का शिकार बनाया जा रहा है। अपल्पसंख्यकों के खिलाफ दिन रात षड्यंत्र रचा जा रहा है। भारत की सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है। जबसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(NDA-2) की सरकार केंद्र सरकार में आई है तबसे इसकी इस तरह की संगठनों की मनमानी चरम सीमा पर है।
क्यों है विषय चिंताजनक
हम भारतीयों को चिंता इसलिए है कि इस तरह देश गृह युद्ध की ओर बढ़ रहा है। इस तरह सामाजिक समरसता छिन्न भिन्न हो रही है। जिससे लोकतंत्र की नींव कमज़ोर हो रही है। जिस देश को हमारे महान स्वतंत्रता सेनानी ने अपने लहू से इस वतन को आज़ादी दिलाई और लोकतंत्र की प्रणाली को अपनाया तथा संविधान को स्थापित किया। जिससे देश वैश्विक परिदृश्य में स्थापित हो सकें उसी विचारों को तिलांजलि दे रहा है छद्म राष्ट्रवाद।
क्या है इससे निपटने के उपाय
आपको अगर आरएसएस से मुकाबला करना है तो आपको वैचारिक स्तर पर लड़ना होगा, क्योंकि आरएसएस 1925 से आम सनातनधर्मी को दिग्भ्रमित किया है और उनमें अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति नकारात्मक विचारों से लैस कर दिया है। ठीक इसी प्रकार अन्य समुदाय के प्रति भी इनकी यही मंशा रही है। इसका निराकरण गांधी को शाश्वत अपनाना होगा और अम्बेडकर की विचारों को फैलाना होगा। साथ ही साथ परियार, लोहिया, मौलाना आजाद, नेहरू, कर्पूरी के विचारों को जन जन तक पहुंचाना होगा।
संविधान की जानकारी आमजनों तक ले जाना होगा। संविधान विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने पर उनको आमजनों के साथ न्यायालय में एक्सपोज करना होगा। राजनीतिक पार्टियों में संविधान के मूल्यों पर आधारित योजनाओं को धरातल पर उतारना होगा। साथ ही गैर छद्म राष्ट्रवाद सरकार को लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे। साथ ही साथ माननीय न्यायालय को स्वसंज्ञान लेना होगा ताकि संविधान की आत्मा बची रहे।