भारत ने पाकिस्तान को हराकर दृष्टिबाधित क्रिकेट टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप जीत लिया है। इस फाइनल मुकाबले में पहले बल्लेबाजी करते हुए पाकिस्तान ने पूरे 20 ओवर में 8 विकेट के पतन पर 197 रन बनाये। पाकिस्तान की ओर से बदर मुनीर ने सर्वाधिक 57 रन बनाये। लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत ने 17.4 ओवर में ही 200 रन बनाकर जीत दर्ज कर ली।
भारतीय दृष्टिबाधित क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप जीतकर देश की शान बढ़ाई है। यही नहीं, साल 2012 का पहला दृष्टिबाधित टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप भी भारत ने ही अपने चीर प्रतिद्वन्दी पाकिस्तान को हराकर जीता था। मगर अफसोस इस बात का है कि भारतीय समाज व मीडिया में इस बड़ी जीत को हल्के में लिया जा रहा है। जश्न मनाना तो दूर की बात है, हमारे समाज में इस वर्ल्ड कप जीत की कहीं कोई चर्चा तक नहीं कर रहा है।
ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे दृष्टिबाधित टीम की इस जीत को सामान्य टीम की जीत से कमतर आंका जा रहा है। सवाल उठता है कि क्या विकलांग जनों को महज़ ‘दिव्यांग’ कह भर देने से हमारा पूरा साथ-सहयोग उन्हें मिल जायेगा? या फिर उनके सुख-दुख में अपनी पूरी सहभागिता दिखाने की ज़रुरत होती है।
भारतीय दृष्टिबाधित क्रिकेट टीम के प्रति हमारी बेरुखी का आलम यह है कि ‘भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड’ (यानि BCCI) ने अभी तक इसे अपनी मान्यता नहीं दी है। जबकि ऑष्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैण्ड व पाकिस्तान के क्रिकेट बोर्ड काफी पहले ही दृष्टिबाधित टीम को अपनी मान्यता दे चुके हैं। BCCI के द्वारा मान्यता नहीं दिये जाने की वजह से भारतीय खिलाड़ियों को इतनी कम राशि मिलती है कि अपना दैनिक खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है फिर भी देश की शान बढ़ाने वाले दृष्टिबाधित या अल्प-दृष्टिबाधित खिलाड़ियों को न्यूनतम आवश्यक राशि देने से कन्नी काट रहा है। अगर भारत में क्रिकेट एक धर्म है तो सवाल उठता है कि क्या यह धर्म की आड़ में हो रहा भेदभाव नहीं है?
भारत की मुख्य (सामान्य) टीम में खेलने वाले खिलाड़ियों को अलग-अलग प्रारुपों के लिए सलाना 25 लाख से एक करोड़ रुपये तक मेहनताना मिलता है। टी-ट्वेंटी मैचों में प्रति खिलाड़ी प्रति मैच दो लाख रुपये दिये जाते हैं। आर्थिक रुप से हो रहे भारी भेदभाव का शिकार केवल दृष्टिबाधित क्रिकेट खिलाड़ी ही नहीं हैं बल्कि महिला क्रिकेट टीम का भी यही हाल है। एकदिवसीय या टी-ट्वेंटी खेलने वाली भारतीय महिला खिलाड़ियों को बीसीसीआई से प्रति मैच महज ढाई हजार रुपये ही दिये जाते हैं। खिलाड़ी की मेहनताना के रुप में दी जाने वाली इस राशि में गतिमान यह भारी भेदभाव दर्शाता है कि राष्ट्रीय पटल पर भी दृष्टिबाधितों व महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है।
इस भेदभाव के पीछे आम-आवाम में इनकी लोकप्रियता को जिम्मेदार ठहराया जाता है। यह काफी हद तक सही भी है। इसलिए यह हम सब की भी जिम्मेदारी बनती है कि हम खेलों में दृष्टिबाधित व महिला खिलाड़ियों को उतनी ही तवज्जो दें जितनी की पुरुष खिलाड़ियों को देते हैं।
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