Youth Ki Awaaz के लिए मानवेंद्र मल्होत्रा और सौरभ शर्मा
आगरा से 95 किमी दूर, सरवन गांव के 48 साल के जगमोहन सिंह, आज तक कुंवारे हैं। वजह है इस गांव में बिजली का ना होना। 1983 में जब ये गांव बसाया गया था तब से ही इस गांव में बिजली नहीं है।
जगमोहन हर शाम मिट्टी के तेल से लैंप जलाकर शाम का खाना बनाने के लिए चूल्हा जलाते हैं। जगमोहन यूं ही अकेला जीवन बिता रहे हैं। जगमोहन अकेले नहीं हैं बल्कि सरवन गांव में जन्में हर पुरुष की तकदीर यही है। आस-पास के गांव से कोई भी अपनी बेटी की शादी बिना बिजली वाले इस गांव में करने को तैयार नहीं है। वक्त के साथ यहां के पुरुषों ने ये सच्चाई स्वीकार कर ली है।

हालांकि जगमोहन के पास गांव छोड़कर किसी और गांव में बसने का विकल्प था। जगमोहन के बाकी दो भाइयों ने ऐसा ही किया। वो आगरा में बस गए और शादी करके अपना घर बसा लिया। लेकिन जगमोहन अपने पुश्तैनी गांव छोड़ने को तैयार नहीं हुए। इस उम्र में अब जगमोहन ने शादी की और वैवाहिक जीवन की उम्मीद भी छोड़ दी है। जगमोहन के घर में उनके अलावा बस उनकी 65 साल की मां हैं, जगमोहन के पिता की मृत्यु 2013 में हो गई थी।
जगमोहन बताते हैं किअगर मैं सरवन छोड़ने को तौयार हो जाता तो मैं भी आज शादीशुदा होता। बहुत सी लड़कियों के माता-पिता ने मुझे समझाने की कोशिश की लेकिन मेरे माता-पिता नहीं माने। मैं उन्हें अकेले कैसे छोड़ देता।
सरवन उन लोगों द्वारा बसाया गया था जो सूखे की वजह से भरतपुर छोड़ आए थे। वो आगरा तक आए और शायद उन्हें पहाड़ के उपर का ये नज़ारा भा गया। उन्होंने वहां घर बनाया और गांव को रहने लायक बनाया हालांकि वहां बिजली नहीं आई। पहली बार जब गांववालों को बिजली 1999 में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत नसीब हुई। वो इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने टेलीविज़न और अन्य बिजली से चलने वाले उपकरण खरीद लिए। फिलामेंट बल्ब ने मिट्टी के तेल से जलने वाली डिबियों की जगह ले ली।
गांव की सबसे बुज़ुर्ग महिला 83 वर्षीय लाडिया सिंह बताती हैं कि मुझे आज भी याद है रविवार का दिन था। बच्चों ने किसी उत्सव जैसे कपड़े पहने थें। हम सब शक्तिमान देखने का इंतज़ार कर रहे थे। एक इंसान को एंटीने के नीचे ही बैठा दिया गया था कि सिग्नल बिल्कुल भी खराब ना हो।
लेकिन गांव में ये बिजली वाला चमत्कार बस 3 दिन तक चला। मिट्टी के डिबिये अब अपने तिरस्कार का बदला लेने वापस आ चुके थे।
बन्ना देवी बताती हैं कि एक दिन आंधी आई और गांव को फिर से अंधेरे में ले आई। उस आंधी में बिजली की लाइन्स टूट गई। एक पोल और बिजली के तार भी टूट गए और मेरे पति की बहन और उनकी चार बकरियां भी मर गई।
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना(RGGVY) सारी पुरानी योजनाओं को मिलाकर 2005 में शुरु किया गया था। ये योजना केन्द्र सरकार की तरफ से 90% ग्रांट के साथ शुरुआत की गई थी। बाकी 10 प्रतिशत ग्रामीण विद्युत निगम से दिया गया। 2015 में RGGVY को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरु किये गए दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योती योजना का हिस्सा बना दिया गया।
ग्रामीण विद्युतीकरण द्वारा जारी किये गए आंकड़े के मुताबिक, अप्रैल 2015 तक 18,452 बिना बिजली वाले गांवों में से 11,964 गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है। और 5734 गांव और हैं जहां बिजली पहुंचाना बाकी है। दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के क्षेत्रीय निरिक्षक मोहित श्रीवास्तव ने सवालों का जवाब ये कहते हुए नहीं दिया कि बिजली पहुंचाने का कार्य अभी प्रगती पर है।

गावंवालों का कहना है कि ये मायावती की मेहरबानी थी कि सरवन गांव को 2009 में 3 दिन के लिए बिजली मिली। शकुंतला कहती हैं कि जब वो सत्ता में थी तो हर अधिकारी हमारी बात सुनते थें। उसके बाद लोगों ने सरवन के अंधेरे की बात दुबारा तब करनी शुरु की जब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में उत्तर प्रदेश के नागला हथरस जिले के नागला फतेला गांव का ज़िक्र किया। प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर विपक्ष का ध्यान खींचा। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को इसके लिए कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया।
लेकिन सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का काम पूरा करने की डेडलाइन की तारीख को बार बार आगे बढ़ाते रहने के चलते अभी भी सरवन गांव को बिजली मिलने में काफी वक्त लगेगा। ग्रामीण विद्युतीकरण द्वारा इंटरनेट पर जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक बिजली नहीं होने के कारण उत्तरप्रदेश के 31 फीसदी गांवों में लोग नहीं रहते हैं। 1 फरवरी 2017 को बजट पेश करने के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि मई 2019 तक गांवों का 100 फीसदी विद्दुतीकरण का काम पूरा हो जाएगा।
गांव के प्रधान यतेंद्र सिंह बताते हैं कि आखरी बार इस गांव में किसी पुरुष की शादी जाने कितने सालों पहले हुई थी। राकेश सिंह गांव से आगरा शहर चले आएं और वहां शादी की। अब वो वहां एक दिहाड़ी मज़दूर हैं। वो बताते हैं कि उन्हें पता है कि सरवन को बिजली क्यों नहीं दी जा रही है। सरकार आखिर बिजली पहुंचाए हीं क्यों, गांव में ना स्कूल है ना अस्पताल। अब कोई नेता भी यहां वोट मांगने नहीं आता। उन सबको हमारी हालत पता है।
गांव में जो मोबाईल फोन इस्तेमाल करते हैं वो पास के तांतपुर गांव में फोन चार्ज करवाने जाते हैं, 10 रुपये हर चार्ज की कीमत पर। और जो रेडियो बजाते हैं वो भी बैटरी का स्टॉक रखते हैं।
1983 में जब गांव बसाया गया तब शायद ही किसी को ये अंदाज़ा था कि पहाड़ पर चढ़कर कोई अपनी बेटी की शादी अंधेरे में क्यों करेगा। आज इस गांव में 30 नौजवान ऐसे हैं जिनकी शादी नहीं हुई है। 2001 की जनगणना के मुताबिक उत्तर प्रदेश के 1,18,93,864 अविवाहित लोगों में से एक जगमोहन बताते हैं कि एक वक्त पर हमारे गांव में 120 परिवार रहते थें अब बस 25 हैं। कुल वोटर्स की संख्या 217 है। जगमोहन भी उन्हीं कुछ लोगों में से हैं जिनके घर अंधेरे की वजह से बारात नहीं आई।
The post उत्तर प्रदेश का वो गांव जहां कोई महिला रिश्ता नहीं जोड़ना चाहती appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.