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कैसा होता है एक लड़की का अकेला इंडिया ट्रिप

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A Girl's solo road trip in india

Tripoto पर एक सवाल देखा, “I am not sure about travelling Solo in India. Can anyone suggest some safe destinations?” (मुझे भारत में अकेले सफ़र करने को लेकर शंका है। क्या कोई मुझे ऐसी घूमने की जगह बता सकता है जो सुरक्षित हो?) उस पर कुछ लोगों के जवाब थे कि, “भारत सुरक्षित नहीं  है, मैं खुद अपने लोगों के बीच सुरक्षित महसूस नहीं करती।” इस सच को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन ये पूरा सच भी तो नहीं है। एक भारत वो भी तो है जहां अकेली लड़की को मौका नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी समझकर उसकी रक्षा की जाती है।

अगर आप सोच रहे हैं कि ये बस कहने, सुनने या लिखने में ही अच्छा लगता है तो आइये आपको मिलवाती हूं भारत के इस दूसरे पहलू से। इस भारत से मेरी मुलाकात तब हुई, जब अकेली लड़की होते हुए मैंने भारत भ्रमण करने का इरादा बनाया, इस जिज्ञासा के साथ कि चलो अपने लोगों को जाने पहचाने।

Humayun's Tomb Delhi
हुमायूं का मकबरा, दिल्ली

मेरा पहला सोलो ट्रिप दिल्ली-अमृतसर- सच कहूं तो मैं बहुत डरी हुई थी पर जब मैं दिल्ली पहुंची और हुमायूं के मकबरे पर सुबह टहलने आई एक आंटी ने मुझे अकेला देखकर बड़ी उत्सुकता से पूछा, “अकेले आई हो?” और फिर शुरू हुआ बातों का सिलसिला जिसमें कुछ इतिहास भी था। मुझे बिल्कुल भी अकेलापन महसूस नहीं हुआ।

दिल्ली घूमने के बाद मैं अमृतसर पहुंची, सुबह 4 बजे गोल्डन टेम्पल जाना था तो सुबह 3:30 बजे मैंने ऑटो पकड़ा और गोल्डन टेम्पल पहुंची।गोल्डन टेम्पल से वाघा बॉर्डर के लिए भी ऑटो लिया, शर्मा जी का ऑटो था वो। खूब बातें हुई उनसे, उनके परिवार के बारे में, मेरे परिवार के बारे में। वो ये सोचकर हैरान हो रहे थे कि आखिर मेरे घरवालों ने मुझे अकेले इतनी दूर कैसे भेज दिया? उन्होंने कहा कि, “दीदी मेरी 3 बहनें हैं, पर ना कभी वो हिम्मत कर पायी अकेले कहीं जाने की और ना कभी हमारी हिम्मत हुई उन्हें अकेले भेजने की।” मुझे कोई मंदिर देखना होता तो वो खुद मुझे दरवाज़े तक छोड़कर आते और कहते, “दीदी हम हैं आपके साथ, कोई परेशानी न होने देंगे।”

फिर वाघा बॉर्डर पर मुलाकात हुई कोलकाता से आए एक परिवार से और मैं आज भी उनके साथ संपर्क में हूं। जब कोलकाता जाने का प्लान बना और दादा-भाभी को खबर दी तो उनकी ख़ुशी का तो पूछिए ही मत। वो बोले, “आपको हमारे घर पर ही रहना है, अच्छा आप चिकन और फिश खाते है ना?”

Allahabad Bridge
इलाहबाद ब्रिज की एक तस्वीर

वाराणसी से रीवा की राइड– रीवा जाते हुए मैंने इलाहबाद का रास्ता लिया, इलाहबाद तक तो सब ठीक रहा पर मुश्किल शुरू हुई उसके बाद। रास्ता बहुत ख़राब था, शाम के 6 बज चुके थे, 130 कि.मी. जाना और बाकी था और मेरी सवारी थी एक स्कूटर। रोड का काम चालू था तो सफ़ेद मिट्टी में गाड़ी फंसी जा रही थी, स्कूटर चलने में भी बहुत मुश्किल हो रही थी। रास्ता सही है या गलत समझ नहीं आ रहा था, तभी सामने एक रीवा के नंबर प्लेट की बाइक दिखी। मैं समझ गई कि ये भी रीवा जा रहे हैं और मैं हो ली उनके पीछे-पीछे। कुछ दूर तक तो उनके पीछे चली फिर अचानक से उन्होंने अपनी बाइक दूसरे रास्ते पर मोड़ ली।

मैंने अब एक जगह रुककर लोगों से पूछा तो मुझे बताया गया कि बिलकुल सीधा-सीधा जाना है। रात हो चुकी थी, सीधे चलते-चलते मैं ऐसी जगह जा फंसी जहां रास्ता ही ख़तम हो गया था। रास्ते पर कोई लाइट नहीं और किसी से पूछ सकूं ऐसा कोई इंसान भी नहीं दिख रहा था। डरकर बस रोना ही बाकी था कि पीछे से आवाज़ आयी, “अरे आप तो गलत रास्ते आ गयी, मैंने वहां से गाडी मोड़ ली थी क्यूंकि वो रास्ता अच्छा था। मुझे लगा आप पीछे-पीछे आ जाएंगी, आप नहीं दिखी तो मैं आ गया आपको देखने। अब साथ ही चलिएगा।” ये वही बाइक वाले जनाब थे, 100 km का सफर हम दोनों ने साथ में तय किया उनकी बाइक और मेरा स्कूटर। रास्ता ऐसा सुनसान कि कोई कुछ कर ले तो खबर भी ना मिले। बीच में बारिश भी हुई, हम एक ढाबे पर रुके और रात 10 बजे हम रीवा पहुंचे बिलकुल सही सलामत। वहां से मैं अपने होटल और वो अपने घर, हम आज भी हम संपर्क में हैं।

कन्याकुमारी राइड– कन्याकुमारी से कुछ 117 km पहले मेरा स्कूटर एक फैक्ट्री के सामने खराब हो गया, वो स्टार्ट तो हो रहा था पर आगे नहीं बढ़ रहा था। फैक्ट्री का गार्ड समझ चुका था कि कोई परेशानी ज़रुर है। वो देखने आए पर दिक्कत ये कि ना उन्हें हिंदी समझ आ रही थी और ना इंग्लिश। उन्होंने और दो लोगों को बुलाया लेकिन ना वो गाड़ी की परेशानी समझ पा रहे थे और ना मेरी भाषा।

ऐसा करते-करते लोग जमा होते चले गए और फिर आये उस फैक्ट्री के मेंटेनेंस मैनेजर, उन्हें हिंदी-इंग्लिश समझ तो आ रही थी, पर गाड़ी की परेशानी नहीं। उन्होंने अपने पहचान के एक मैकेनिक को कॉल लगाया और आने के लिए कहा। कॉल कट हुआ ही था कि उनकी कंपनी का एक वर्कर आए जो मेरी बात समझ पा रहे थे और उन्होंने गाड़ी की प्रॉब्लम भी पता लगा ली। उन्होंने तुरंत मैकेनिक को कॉल करके परेशानी बताई। जब ये सब लोग मिलके मेरी परेशानी का हल ढूंढ रहे थे तो मैं बैठकर कॉफ़ी पी रही थी। कुछ  देर बाद मैकेनिक आया मैंटेनस मैनेजर उनके साथ गाड़ी को धक्का देकर लेकर गए और मुझे कार से वर्कशॉप तक छोड़ा गया। जब तक गाड़ी ठीक नहीं हुई वो मेरे साथ रहे। तिरुनेलवेल्ली तक गाड़ी उन्होंने खुद चलाई और वहां से 90 km दूर कन्याकुमारी का सफर रात को 11:30 बजे मैंने पूरा किया।

कन्याकुमारी का एक दृश्य

अनुभव ऐसे और भी हैं, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक। बिना जान-पहचान किसी ने बस यूं ही रोटी खिला दी तो किसी ने चाय पिला दी। मेरा फ़ोन बंद पड़ा तो कॉल के लिए मदद कर दी। एक किताब लिख दी जाए अनुभव इतने हैं, लिखूंगी उनके बारे में भी पर एक-एक कर। आज जितने अनुभव लिखे हैं उम्मीद है उसमे आपको भारत के दूसरे पहलू की झलकियां ज़रूर दिखी होंगी।

आप अगर मुझसे भारत के बारे में पूछेंगे तो मैं बस यही कहूंगी हां थोड़ा बुरा तो है पर उससे कहीं ज़्यादा खूबसूरत भी है। थोड़ा नज़र बदलकर देखिए और एक बार हिम्मत करके देखिए। टीवी, पेपर, सोशल मीडिया इसके परे भी एक सच है जिसे आप खुद अपने अनुभवों से ही जान और समझ सकते हैं। हर अनुभव अच्छा होगा ज़रूरी नहीं, पर उसके डर से घर से बाहर निकलना तो छोड़ा नहीं जा सकता। लड़ना नहीं सीखेंगें तो देश बदलेंगे कैसे? जीतेंगे कैसे? आपकी कमज़ोरी ही किसी और की ताकत बनती है, आप किसे ताकतवर देखना चाहते हैं? तय आपको करना होगा।

The post कैसा होता है एक लड़की का अकेला इंडिया ट्रिप appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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