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बीवी को शादी के गिफ्ट में टॉयलेट कौन देता है भई!

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एक फिलिम आ रही है, टॉयलेट-एक प्रेम कथा। हैं!! ई कइसन नाम हुआ बे? अब फिलमे अइसन है, त नाम का रहेगा? अच्छा! एक जोक सुना होगा- विश्व का सबसे बड़ा शौचालय कौन-सा, जवाब- रेलवे लाईन। दरअसल, यह केवल एक चुटकुला नहीं, बल्कि हमारी सच्चाई है।

अब, इसी पर केंद्रित एक फीचर फिल्म लेकर आए हैं नीरज पांडे एंड टीम। खुले में शौच जैसी दीर्घव्यापी सामाजिक समस्या पर केंद्रित इस फिल्म में देसी प्रेम का तड़का है। इस प्रेम कहानी के केंद्र में टॉयलेट है, जो कि एक क्रांति बन जाता है। मैं जिस राज्य (बिहार) से हूं, वहां आज भी गांव-कस्बों में घर में शौचालय बनवाना सही नहीं माना जाता। परंपरा, रुढि़वाद और जागरूकता की कमी इसके आड़े आती है। घर में डीटीएच, रंगीन टीवी और आदमी पीछे एक-दो स्मार्टफोन दिख जाएगा, लेकिन शौचालय नहीं। एेसे में सुबह का सबसे पहला असाइनमेंट होता है, हाथ में लोटा लिए खेत की ओर निकलना। घर के मरद रेलवे लाइन पर भी चले जाते हैं। अब सोचिए, जिन औरतों के घूंघट ना लेने से घर की इज्जत पर आंच आती है, उन्हीं औरतों का भोरे-भोरे लोटा लेके खेत जाना सम्मान की बात है क्या?

खैर, फिल्म के ट्रेलर के आधार पर अब फिल्म की बात करते हैं। मांगलिक और कुंडली दोष के कारण नायक केशव (अक्षय कुमार) की भैंस से शादी कराना ही दर्शाता है कि हम कैसी रुढि़वादिता में जी रहे हैं। सीधे सादे केशव को प्रोग्रेसिव सोच वाली जया (भूमि पेडनेकर) से तकरार और फिर प्यार हो जाता है। शादी होती है और फिर शौचालय का न होना, दोनों के अलगाव का कारण बनता है। दोनों पहले आपस में लड़ते हैं और फिर साथ मिलकर लड़ते हैं। फिर शुरू होता है एक अभियान।

आशिकों ने आशिकी के लिए ताजमहल बना दिया, साला हम एक संडास न बना सके

ऊपर लिखा फिल्म के नायक केशव का डायलॉग हो या “फिर बीवी पास चाहिए, तो संडास चाहिए” वाला डायलॉग। फिल्म के किरदारों के डायलॉग मैसेज तो देते ही हैं। (हम कितनी आसानी से दकियानुसी चीजों को स्वीकार कर लेते हैं न) शादी की अगली सुबह नायक की बहन कहती है- “भाभी सवा चार हो गए, सभी इंतजार कर रहे हैं, लोटा पार्टी में तुम्हारे वेलकम का।” नायिका शॉक्ड! वहां भी ताना- “ससुराल में खाने को न दे रहे, सारी लाज शरम छोड़ कर लग जाओ काम पर।” और यहां से शुरू होती है क्रांति। नायिका का डायलॉग- “मर्द तो घर के पीछे बैठ जाते हैं, हम तो औरतें हैं, हमें हर चीज के लिए ज्यादा मेहनत करनी होगी।”

नायक के पिता का डायलॉग –“जिस आंगन में तुलसी लगाते हैं, वहां शौच करना शुरू कर दें?” पिछड़ी सोच दर्शाता है। वहीं नायिका के पिता का डायलॉग- “इफ यू चेंज नथिंग, नथिंग विल चेंज” ज़ोर देता है सोच बदलने पर। नायक का डायलॉग- “बीवी वापस आए न आए, संडास तो बनवा कर रहूंगा इस गांव में” दर्शकों के सीने में भी जीत का दंभ भर देता है।

गुटरू गुटूर गूं ने भी दिया था यही संदेश

टॉयलेट-एक प्रेम कथा के बाद राकेश मेहरा भी इसी मुद्दे पर फिल्म लेकर आ रहे हैं। इससे पहले पिछले साल भी एक फिल्म बिहार की अस्मिता शर्मा और प्रतीक शर्मा ने बनाई थी। फिल्म का नाम था- गुटरूं गुटुर गूं। दरअसल, गांव देहात में शौच को हग्गू या गूं कहा जाता है। जहानाबाद के रियल लोकेशंस पर महज 35 दिनों में फिल्म तैयार हो गई थी। सामाजिक कुरीतियों पर ही केंद्रित एक चर्चित टीवी शो प्रतिज्ञा में ठकुराइन बनी सुमित्रा सिंह के रोल में अस्मिता शर्मा जंची हुई थी। फिल्म में दिखी तो आंखों ने खूब पसंद किया। राज्य सरकार ने टैक्स फ्री कर दिया था। बड़ी स्टार कास्ट नहीं होने के बावजूद फिल्म अच्छा संदेश दे गई।

टॉयलेट-एक प्रेम कथा में नायक पूछता है- एक शौच के लिए इतना गुस्सा? नायिका कहती है- हमें पहले पता होता तो शादी ही न करती। ठीक इसी तरह गुटरुं गुटुर गूं में नायिका का रोते हुए डायलॉग है, “हमरा माई-बाबू बिना देखले इहां बिहा कर दिए।”

कई एेसी घटनाएं अखबार और न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनती रही हैं। घर में शौचालय नहीं था, दूल्हन ने शादी से मना किया या शौचालय नहीं होने की जानकारी लगते ही दूल्हन ने लौटाई बारात या दूल्हन ने दी तलाक की अर्जी, तब जाकर बना घर में शौचालय। इन सभी घटनाओं में देखा जाता है कि महिलाएं ही आगे बढ़ती हैं, सख्ती करती हैं, तभी पुरुष इनिशिएटिव लेते हैं।

गांव-गांव तक हो फिल्म की पहुंच

फिल्म को सरकार के स्वच्छता अभियान से जोड़कर देखा जाना इस फिल्म की यूएसपी बढ़ाता है। अब प्रॉड्यूसर, डिस्ट्रीब्यूटर, एग्जिब्यूटर और सरकारों को भी इस ओर सोचना है कि फिल्म जिनके लिए देखना सबसे ज़्यादा ज़रुरी है, उन तक पहुंचाई कैसे जाए। टैक्स फ्री कीजिए, कुछ माह बाद इसे प्रॉजेक्टर के माध्यम से दिखाइए, कुछ भी कीजिए, लेकिन ग्रामीण परिवेश तक गांव के दर्शकों तक फिल्म पहुंचे, तभी संदेश जाएगा। बॉक्स ऑफिस कलेक्शन अलग बात है, लेकिन असली सफलता फिल्म की यही होगी।

ग्रामीण दर्शकों से अंतिम बात

जब तक अपनी जागरूकता नहीं होगी, तो सरकार क्या करेगी। सार्वजनिक शौचालय बनवा ही रही है। घर में बनवाने का खर्चा दे ही रही है। अब का कहते हैं? ए बिन शौचालय के गांव वाले भाई लोग, आप ही से कह रहे हैं। टीवी बाद में लाइएगा, बीवी लाने से पहले शौचालय बनवा रहे हैं न?

The post बीवी को शादी के गिफ्ट में टॉयलेट कौन देता है भई! appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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