“आपको मेरा नाम बदलने की ज़रूरत नहीं है। मैंने जो कहा मैं उस पर कायम हूं।” ये कहना है कोलकाता के सोनागाछी में पार्ट टाइम सेक्स वर्कर का काम करने वाली ट्रांसजेंडर महिला सिंटू बागुई का। सिंटू जब 21 साल की थी तो उनकी मां का देहांत हो गया। वो अपने पिता, दादी, बड़ी बहन और उनके बच्चों के साथ रहती हैं।
सिंटू 2009 से एक क्षेत्रीय NGO की कार्यकर्ता के तौर पर ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए काम कर रही हैं। सिंटू बताती हैं, “सेक्स वर्क मेरा मुख्य व्यवसाय नहीं है। मैं यह काम महीने में 3 से 4 बार ही करती हूं। मैं कोठों पर नहीं जाती, मुझे फोन आते हैं और फिर मैं होटलों या घरों में जाती हूं।” उन्हें इस बात का पूरा एहसास है कि उनका संघर्ष क्यूं ज़रूरी है, वो आगे बताती हैं कि, “सरकार वादे तो बहुत सारे करती है, लेकिन करती कुछ नहीं है। राज्य सरकार तो हमारे मसले पर कुछ कहती ही नहीं है। जब सरकार हमारे लिए कुछ करेगी ही नहीं तो मजबूरन हमें यही काम (सेक्स वर्क) करना होगा।”
सिंटू के मुताबिक ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर समाज में मौजूद भ्रांतियों के चलते समुदाय के अधिकांश लोग सेक्स वर्क में जाने के लिए मजबूर हैं। वो आगे बताती हैं, “मुझे स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, ना मेरे माता-पिता ने मेरा साथ दिया, और ना ही इस समाज ने मुझे अपनाया। ऐसे में मेरे पास क्या कोई और विकल्प है? गरीब परिवारों के ट्रांसजेंडर लोग ज़्यादातर अशिक्षित ही रह जाते हैं और कहीं नौकरी करना तो दिन में सपने देखने जैसा है। हमें केवल एक सेक्स वर्कर के रूप में ही स्वीकार किया जाता है, इसलिए इस व्यवसाय में हमारी तादाद बहुत ज़्यादा है।” एक बात जिसको लेकर वो आश्वस्त हैं वो ये कि – “कोई और काम हो ना हो सेक्स वर्क इंडस्ट्री हमारे लिए हमेशा रहेगी।”
“माता-पिता ने मेरी यौनिकता (सेक्शुएलिटी) को कभी स्वीकार नहीं किया”
सिंटू को जन्म के समय एक लड़का माना गया। उनके माता-पिता इससे बहुत खुश थे। लेकिन जब उन्हें पता चला कि सिंटू क्या चाहती हैं तो उन्हें इससे बहुत बड़ा सदमा लगा और वो अवसाद से ग्रसित हो गए।

सिंटू बताती हैं, “मुझे पूरा यकीन है कि सभी माता-पिता यही चाहते हैं कि उनके बच्चे सेक्शुअली स्ट्रेट हों। मुझे इस बात से कोई अचरज नहीं होता कि मेरे माता-पिता यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे कि मैं एक लड़का नहीं हूं। वो ये भी नहीं जानते कि मैं एक सेक्स वर्कर हूं, उन्हें बस इतना पता है कि मैं एक NGO के लिए काम करती हूं। बहुत सी चीज़ों को स्वीकार करना उनके लिए मुश्किल है। और ये चीज़ें तभी बदलेंगी जब समाज में बदलाव आएगा।”
सिंटू जब आठवीं कक्षा में थी तो उन्हें अचानक स्कूल से निकाल दिया गया। वो एक लड़कों का स्कूल था। वो बताती हैं, “जब स्कूल में मेरे साथ पढ़ने वाले बच्चों को मेरे यौनिक झुकाव के बारे में पता चला तो उन्होंने मुझे परेशान करना और मेरा यौन शोषण करना शुरू कर दिया।”
स्कूल से निकाल दिए जाने के बाद सिंटू ने एक प्लाईवुड फैक्ट्री में काम करना शुरू किया, सिंटू बताती हैं कि, “मैं उस वक़्त 15 साल की थी और वह फैक्ट्री भी कोई अच्छी जगह नहीं थी। वहां पर भी मुझे परेशान किया गया और मेरा यौन शोषण किया गया। इस तरह से हिंसा का सामना करना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। इन सबसे मुझे मानसिक और शारीरिक सदमा पहुंचा था। मैंने वहां काम करना छोड़ दिया और मैं एक सेक्स वर्कर बन गई। मुझे इससे पैसे मिलते थे।”
सिंटू के लिए तब से ही सेक्स वर्क एक व्यवसाय नहीं है, वो कहती हैं- “मैंने सेक्स वर्क को रोज़ी-रोटी के लिए अपनाया। किसी के साथ सेक्स करने के लिए मुझे पैसे मिलते थे तो मैंने किया। मैं इसे व्यवसाय नहीं मानती।”
“सेक्स वर्करों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है”
ये बहुत से लोगों की हर रोज़ की सच्चाई है। सिंटू ने अपने बारे में यूथ की आवाज़ को कुछ इस तरह से बताया, “सेक्स वर्करों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। कभी-कभी कुछ मर्द मेरे साथ भी बुरा बर्ताव करने की कोशिश करते हैं लेकिन उन्हें पता है कि मैं एक NGO की कार्यकर्ता हूं, इसलिए पीछे हट जाते हैं। हर कोई चाहता है कि उसे समाज में इज्ज़त मिले और इनमें वो मर्द भी शामिल हैं जो सेक्स के लिए मुझे फोन करते हैं।”
वो आगे कहती हैं, “उन्हें पता है कि अगर चाहें तो हम भी उन्हें परेशान कर सकते हैं। लेकिन मैं एक बात और कहूंगी कि महिला सेक्स वर्करों से कहीं ज़्यादा हिंसा हमारे साथ होती है।”
दरबार महिला समन्वय कमिटी, सोनागाछी की सेक्रेट्री भारती डे कहती हैं, “सेक्स वर्करों के साथ होने वाली हिंसा की बात करें तो ट्रांसजेंडर लोगों को सबसे ज़्यादा प्रताड़ित किया जाता है। महिला सेक्स वर्कर की तुलना में उन्हें कहीं ज़्यादा प्रताड़ित किया जाता है और पुलिस का बर्ताव भी उनके साथ बहुत बुरा होता है।”
सिंटू इस बात से पूरी तरह सहमत नज़र आती हैं, वो कहती हैं कि, “पुलिस तो हमें इंसान भी नहीं समझती। अगर मैं किसी ट्रांसजेंडर महिला के साथ हुए बलात्कार की शिकायत करने जाती हूं तो पुलिस कहती है कि इसमें बलात्कार करने के लिए क्या है? क्या तुम एक सेक्स वर्कर नहीं हो?”
लेकिन भारती डे की संस्था बदलाव लाने की कोशिशें कर रही है, वो बताती हैं, “हमने आनंदम नाम से एक नया ग्रुप शुरू किया है जो ट्रांसजेंडर लोगों के लिए है। वो अपने अधिकाओं के लिए लड़ सकते हैं। अगर पुलिस उनकी बात नहीं सुनती तो हम उनकी मदद करने के लिए तैयार हैं।”
“मेरे सपने देखने का क्या फायदा?”
सिंटू कहती हैं,”हमारे साथ हर जगह भेदभाव किया जाता है। अगर मैं शिक्षित भी होती तो भी मुझे पूरा यकीन है कि मुझे कहीं नौकरी नहीं मिल पाती” सिंटू के अनुसार एक ट्रांसजेंडर सेक्स वर्कर एक दिन में 500 से 1000 रु. तक कम लेता। एक NGO के कार्यकर्ता और एक सेक्स वर्कर का काम करते हुए वो महीने में करीब 9000 रु. तक कम लेती हैं।
लेकिन सेक्स वर्क में भी उन्हें कोई तय दाम नहीं मिलता है, वो कहती हैं- “हमें कई बार बहुत कम पैसों में भी काम के लिए राज़ी होना पड़ता है। इस काम में बहुत मोल भाव किया जाता है। लेकिन अगर मैं 500 रु. में राज़ी नहीं हुई तो कोई और 400 रु. में राज़ी हो जाएगा। ऐसे में मुझे कुछ तो पैसे मिलेंगे।” और उनके साथ बहुत बार धोखा भी होता है, “कई बार ग्राहक कहता है कि वो दो लोग हैं लेकिन वहां जाओ तो चार लोग होते हैं।”
इन सब के बाद भी सिंटू को लगता है कि पैसा कमाना और बचाना ही एक अच्छे भविष्य की और बढ़ने का तरीका है। वो कहती हैं, “मुझे लगता है कि मेरी बहन के बच्चे मुझे अपनाएंगे और मैं उनके साथ ही रहूंगी। ये मेरी इच्छा है, लेकिन क्या पता? अगर वो लोग ऐसा नहीं चाहते हों तब मैं क्या करूंगी।”
ये पूछे जाने पर कि क्या वो आगे भी सेक्स वर्क करती रहेंगी तो वो तुरंत जवाब देती हैं, “कब हमारे लिए कुछ और करने के लिए होगा? मुझे तो अगले 10 सालों में भी ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। तो फिर मेरे सपने देखने का क्या फायदा?”
लेकिन सिंटू शादी जरुर करना चाहती हैं, वो कहती हैं, “कौन नहीं चाहता? मेरी इच्छा है कि मैं अपना लिंग परिवर्तन के लिए ऑपरेशन करवाऊं।” लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत सारा पैसा जोड़ना होगा, जिसकी वजह से उन्हें लगता है कि ऐसा किसी चमत्कार से ही संभव है।
लेखिका परिचय: देबदत्ता मोहंती रे मुंबई की एक पत्रकार हैं। इन्हें प्रिंट पत्रकारिता में 7 सालों का अनुभव है, ये कई राष्ट्रीय दैनिक अखबारों में काम कर चुकी हैं। उनकी रूचि सामजिक और मानवीय मुद्दों से जुड़ी कहानियों में है।
The post पुलिस पूछती है इसमें रेप करने के लिए है क्या? सोनागाछी के ट्रांसजेंडर सेक्स वर्कर की कहानी appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.