राजनीति से लेकर सिनेमा तक हर जगह चर्चा बस परिवारवाद की ही है। राजनीति में परिवारवाद पर कई बार सवाल उठे हैं, आए दिन चर्चाएं भी होती हैं, भले ही वो बेनतीजा रही हो। लेकिन बॉलीवुड में परिवारवाद पर इस रूप में चर्चा पहली बार हुई। आइफा अवार्ड के दौरान परिवारवाद के नाम पर कंगना रनाउत का मज़ाक बनाया गया। हुआ कुछ यूं कि अवार्ड लेने वरुण धवन आए और सैफ़ अली ख़ान ने कहा कि ये अवार्ड तुम्हें तुम्हारे पिता की वजह से मिला है। फिर वरुण ने कहा कि आप यहां अपनी मां की वजह से हैं और फिर करण जौहर ने कहा कि मैं यहां अपने पिता की वजह से हूं। फिर वरुण ने कहा कि करण आपकी मूवी में एक गाना है ‘बोले चूड़िया…बोले कंगना’ और फिर सबने कहा कि अरे बोले कंगना ना बोलो, कंगना ऐसे ही बहुत बोलती और फिर उसके बाद वही फूहड़ हंसी।

दरअसल कंगना ने कॉफ़ी विद करण में करण जौहर से कहा था कि आप बॉलीवुड में परिवारवाद के ध्वज वाहक हैं। इसी बात पर पूरे स्क्रिप्टेड तरीके से कंगना रनाउत का मज़ाक बनाया गया। कंगना वहां मौजूद नहीं थीं। (बाद में औपचारिकता निभाते हुए वरुण धवन ने ट्विटर पर उनसे माफ़ी मांगी।)
यह कहानी सिर्फ सिनेमा की नहीं हैं। जब भी आप स्थापित परंपरा, घराने या दी हुई व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते हैं तो वहां आपको अलग-थलग करने की कोशिश की जाएगी। आम ज़िंदगी में भी कई बार आप इसे महसूस कर सकते हैं। आप अपनी ही कोई कहानी याद कर लीजिए, जब स्थापित व्यवस्था से आपने समझौता ना किया हो और आप अकेले पड़ गए हों। राजनीति में हम सबने देखा कि 16 साल के अनशन के पुरस्कार के तौर पर हमने इरोम शर्मिला को 90 वोट देकर घर पर बैठा दिया। जिसमें अब वापस मणिपुर जाने की हिम्मत नहीं बची। मैं यहां कंगना रनाउत और इरोम शर्मिला की तुलना नहीं कर रही।
कहने का अभिप्राय बस इतना है कि अगर आप स्थापित परंपरा से अलग जाकर कुछ करते हैं तो यकीनन आपका रास्ता बेहद कठिन हो जाता है। उस परंपरा में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल लोग या तो आपके विरोधी होंगे या मूक दर्शक बने रहेंगे। हर जगह परिवार की, घरानों की एक स्थापित परंपरा है और वो जल्दी टूटती नहीं है। चाहे बॉलीवुड हो, राजनीति हो, मीडिया हो या एकडेमिया ही क्यों ना हो, यहां भी घराना है। अगर आप उस परंपरा के साथ नहीं हैं तो आप अलग-थलग कर दिए जाते हैं।
बचपन से एक कहावत सुनती आई हूं- “लीके-लीके सब चले लीके चले कपूत, लीके छोड़ तीन चले शायर, सिंह, सपूत”
कंगना रनाउत बॉलीवुड की वो अभिनेत्री हैं, जिन्हें अब तक तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। जिसने अब तक किसी खान के साथ काम नहीं किया है, ना काम करने के लिए पागल हुई। जो फेयर एंड लवली क्रीम का विज्ञापन करके आपको काले से गोरे होने का सुझाव नहीं देती, जो इस तरह का विज्ञापन करने से साफ़ मना कर देतीं हैं और हमें रेसिस्ट होने से बचा लेती हैं। कंगना वो अभिनेत्री हैं जो बॉलीवुड की स्थापित परंपरा और पितृसत्ता पर ज़ोर-ज़ोर से चोट मार रही हैं और लकीर की फकीर ना होकर एक बनी बनाई परिपाटी का हिस्सा ना बनकर अपनी लाइन खुद बना रही हैं। अफ़सोस बस इस बात का है कि सिनेमा की वो बोल्ड अभिनेत्रियां सहजता से बॉलीवुड की इस पितृसत्तात्मक परिवारवादी परंपरा को स्वीकारकर मूक दर्शक बनी हुई हैं।
फिलहाल टैगोर को याद करके लीक से अलग चलने का हौसला लीजिए:
“जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे तोबे एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे…”
फोटो आभार: facebook page Kangna Ranaut
The post क्योंकि कंगना ने कभी नहीं कहा, ‘जानता है मेरा बाप कौन है’ appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.