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विकास के नाम पर बनारस से ‘बनारस’ही क्यों खत्म किया जा रहा है?

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“बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।”

अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन (Mark Twain) द्वारा की गयी बनारस की यह व्याख्या इस शहर के ऐतिहासिक दबदबे को बताती है।

बनारस हमारे देश का धरोहर है। घाट, गंगा, मंदिर, मशान संकरी, बन्द , आड़ी-तिरछी गलियों में खुले दिल दिमाग के जीवन मूल्य और ठलुवा मस्त मलङ्ग व्यवहार की संस्कृति के कारण ये फिल्मकारों, संगीतकारों, चित्रकारों और साहित्यकारों के आकर्षण का केंद्र रहा है। ये प्राचीनता और आधुनिकता का मिश्रण है। आनंद एल राय द्वारा निर्देशित ‘रांझणा’ और सनी देओल की ‘मोहल्ला अस्सी’ फिल्म में बनारस के इस अलग अंदाज़ को दिखाया गया है। नीरज घयवान की ‘मसान’ में यहां के लोगों के जीवन की जटिलताओं का मार्मिक चित्रण किया गया है।

केदारनाथ सिंह के शब्दों में-
“यह आधा जल में है, आधा मन्त्र में
आधा फूल में है, आधा शव में
आधा नींद में है, आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो तो ये आधा है, और आधा नहीं”

अगस्त 2014 में बनारस को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने के लिए MoU साइन किया गया। हस्ताक्षर पीएम मोदी और जापानी प्रधानमंत्री सिंज़ो अबे की मौजूदगी में हुआ। क्योटो जापान की हेरिटेज सिटी है। पूरे शहर में बौद्ध संस्कृति की छाप है। जापान ने क्योटो को ऐसे विकसित किया है जिससे उसकी वास्तविक पहचान बनी रहे। शहर के सारे धरोहरों को सुरक्षित संरक्षित रखा गया है।

बनारस के साथ जो MoU पर हस्ताक्षर किया गया उसका उद्देश्य विरासत की रक्षा, शहर का आधुनिकीकरण एवं कला संस्कृति के सहयोग के साथ बनारस का विकास बताया गया। लेकिन बनारस को क्योटो बनाने के बजाय न जाने क्यों बनारस से ‘बनारस’ को ही खत्म किया जा रहा है। परमाणु हमले के बावजूद भी जापान ने क्योटो को बचा लिया लेकिन सत्ता द्वारा हो रहे संगठित हमले से क्या हम बनारस को बचा पाएंगे?
आज बनारस से उसकी पहचान को छीनने की कोशिश की जा रही है। देश विदेश से लोग बनारस की गलियों और घाटों को देखने के लिए आते हैं लेकिन मौजूदा सरकार इसको सही नही मानती।

‘आस्था’ और ‘विकास’ के कॉकटेल के साथ आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में बनारस से सांसद चुने गए थे। जनता को ये नहीं मालूम था कि ‘विकास’ आज के दौर का सबसे बड़ा जनविरोधी कार्यक्रम है।

बनारस में चल रहे तमाम कथित विकास परियोजनाओं में से एक है विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर और गंगा पाथवे प्रोजेक्ट। इसे पीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट भी बताया जा रहा है। इसके लिए हज़ार करोड़ का बजट आवंटित किया गया है। इस प्रोजेक्ट के तहत विश्वनाथ मंदिर से मणिकर्णिका घाट तक 60 फीट चौड़ी 200 मीटर लम्बी सड़क बनाया जाना है तथा मंदिर परिसर के क्षेत्र को भी खाली कराया जाना है। इस चौड़ीकरण की योजना में 200 से अधिक पक्के मकान तथा मणिकर्णिका के किनारे बसी पूरी डोम बस्ती को तोड़ा जाना है।

जिन घरों को तोड़ने की बात चल रही है वो अपने आप में धरोहर हैं। इस प्रोजेक्ट की जद में आने वाले सभी मकान 100 से 200 साल पुराने हैं। इतने पुराने घरों से उनका कागज मांगा जा रहा है। कागज़ वाले ही मुआवज़ा का हकदार होंगे। कहते हैं कि बनारस को हर कण, हर क्षण महसूस किया जा सकता है। इन सभी मकानों में वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। पत्थरों से बने ये घर और उनपर बनायी गयी कलाकृतियां दीवारों पर प्रकृति को ज़िंदा करती हैं। दीवारों पर पत्थर को काट कर पशु-पंछी, नर्तकी और देवी देवताओं के चित्र को उकेरा गया है। ये दीवारें हमारी सभ्यता की ऐतिहासिकता का प्रमाण हैं जिसको संरक्षित करने के बजाय ‘विकास’ के नाम पर खत्म किया जा रहा है।

‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ के लिए सरदार पटेल की मूर्ति चीन द्वारा बनवाई जा रही है क्योंकि हमें अपनी कला की पहचान नही है, देश के मूर्तिकारों पर भरोसा नही है। जोर जोर से बोले जा रहे ‘मेक इन इंडिया’ के नारों में ‘इंडिया’ कहाँ है? इसके अलावा कई पुराने मंदिरों को तोड़ा जा रहा है तथा गरीब डोम बस्ती को भी उजाड़ा जा रहा है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस प्रोजेक्ट में विस्थापन का शिकार इतनी बड़ी आबादी के पुनर्वास की क्या योजना है? घाट से जुड़े रोज़गार जैसे पंडा गिरी, डोम कार्य , मल्लाह, मछली पालन, पर्यटन से जुड़े साउथ इंडियन और विदेशियों से जुड़े विभिन्न मनी एक्सचेंज, ट्रैवेल, लॉजिंग, रेस्त्रां, योग शिक्षा, हिंदी टीचिंग आदि से जुड़े लोगों की आजीविका पर संकट आने वाला है, उनके लिए सरकार क्या कर रही है?

60 फीट चौड़ी सड़क बनाकर सरकार किसका विकास करना चाहती है? क्या सरकार गुजरात गोवा के समुद्री तट और बनारस के घाट में कोई फर्क नहीं समझ पा रही? काशी की अन्तरगृही पंचक्रोशी यात्रा के कई मंदिर जिन्हें धरोहर रूप में संरक्षित करने की आवश्यकता है उन्हें ध्वस्त किया जा रहा है। 35 हज़ार से भी ज़्यादा पुस्तकों का भण्डार गोयनका लाइब्रेरी जो कि बिना किसी शुल्क के 20 के दशक से निर्बाध कार्य कर रही है जिसका की शताब्दी वर्ष मनाया जाना चाहिए था उसे भी ध्वस्तीकरण विस्थापन का भय खाए जा रहा है।

नेपाल क्रांति और राजनीति का केंद्र नेपाली मन्दिर और मठ जिसमें नेपाली छात्र और क्रांतिकारी रहते पढ़ते आए है। जो कि काष्ठकला से बनी एक अद्भुत धरोहर है और भारत नेपाल संबंध का एक जीता जागता उदाहरण भी उसे भी इस परियोजना में जमींदोज़ होना है। ना जाने ऐसे कितने दुःखद उदाहरणों के होने या भविष्य में होने की संभावना से यह समूचा इलाका सहमा हुआ है। आए दिन कोई अधिकारी कोई कर्मचारी दरवाज़े पर मापी करने, कागज़ जांच करने और कोई न कोई धमकी या प्रलोभन लेकर खड़ा है। यूरोप, आस्ट्रेलिया और देश दुनिया के कोने से लोग बनारस में घाट और गलियों को ही देखने आते हैं। बनारस अपनी प्राचीनता के लिए ही जाना जाता है।

आदर्श व्यवस्था में सरकार धर्म निरपेक्ष होनी चाहिए और समाज सभी धर्मों का सम्मान करने वाला होना चाहिए। सभी की गरिमा सम्मान एकसमान होनी चाहिए। एक धर्म विशेष में आस्था रखने वाले को दूसरे अन्य धर्मों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखना चाहिए। और बनारस बिना किसी हो हल्ले के आदि काल से यह काम करता आ रहा है।

बनारस गंगा जमुनी तहज़ीब की साझी विरासत और साझे मालिकाने पर लम्बे अरसे में मज़बूत कायम हुए है। बिस्मिल्लाह खान की शहनाई के स्वर से मन्दिर की आरती के समय और धुन कब जुड़ गई कभी इस पर चर्चा ही नहीं हुई। नज़ीर बनारसी गंगा जी मे वजू करके कब ज्ञानवापी मस्जिद की सीढ़िया चढ़ने लगें और यह सब कब बनारस की संस्कृति का हिस्सा बन गया हमें पता ही नही चल। मिर्ज़ा गालिब ने क्या सोचकर 108 शेर बनारस पर लिखे यह इस तानेबाने को तोड़ने खरोचने में लगे लोगों को सोचना चाहिए।

गौतम बुद्ध ने इसी धरती पर पहला उपदेश दिया और पहले पांच शिष्य बनाए । जैन धर्म के लिए तो बनारस एक तीर्थ है। बीमार विश्व को रास्ता दिखाने वाला योग दर्शन और पतंजलि इसी ज़मीन की पैदाइश है। गलियों में धर्म का मेलजोल कब साड़ी बुनते-बेचते व्यापार में बदला और कब ऊपर के तल्लों पर आमने सामने खुलती खिड़कियों में गुझिये और सेवइयों के लेनदेन में एक जीवनशैली जिसे हम ‘ बनारसी ‘ कहते हैं, विकसित करता चला गया पता ही नहीं चला ।

भारत विविधताओं का देश है। ‘कोष कोष पर पानी बदले चार कोष पर वाणी’ ये हमारी विविधता की व्याख्या है। यहां विकास का कोई एक मॉडल नहीं थोपा जा सकता। हमारा संविधान देश की विविधता को प्रोटेक्ट करने की गारंटी देता है, धरोहर और संस्कृति की रक्षा की बात करता है। इस पूरे प्रोजेक्ट में केवल घर ही नहीं टूट रहे बल्कि हमारा सामाजिक और संवैधानिक तानाबना भी टूट रहा है।


सारी तस्वीरें लेखक द्वारा स्थानीय लोगों की मदद से ली गई हैं।

The post विकास के नाम पर बनारस से ‘बनारस’ ही क्यों खत्म किया जा रहा है? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz and is a copyright of the same. Please do not republish.


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