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SC में सेम सेक्स मैरिज की सुनवाई: “LGBTQ+ समुदाय को मिले गरिमापूर्ण जीवन, विवाह और परिवार की संस्था का अधिकार”

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भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, पीएस नरसिम्हा और हिमा कोहली की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाहों के लिए कानूनी मान्यता की मांग करने वाली कई याचिकाओं की आज सुनवाई की। इस सुनवाई में कुछ प्रमुख बातें सामने निकल कर आई हैं। इससे पहले सेम सेक्स मैरिज की कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं को केंद्र ने ‘अर्बन इलीटिस्ट’ दृष्टिकोण बताया था। केंद्र ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा था कि विवाह की मान्यता एक लेजिसलेटिव यानि कानूनी कार्य है जिसे तय करने से अदालतों को बचना चाहिए।

बता दें कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उस संविधान पीठ के सदस्य थे जिसने साल 2018 के नवतेज सिंह जौहर के फैसले के माध्यम से दो समलैंगिकों में;  यानि दो वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के कुछ हिस्सों को हटाकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था जिन्हें LGBTQ+ समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता था।

LGBTQ+ को गरिमापूर्ण जीवन, विवाह और परिवार की संस्था का अधिकार चाहिए

याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील देते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, "LGBTQ को गरिमापूर्ण जीवन, विवाह और परिवार की संस्था का अधिकार होना चाहिए जो दूसरों के लिए उपलब्ध है।" वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कार्यवाही को इस बहस तक ही सीमित रखेगी कि क्या कोर्ट शादी के उद्देश्य के लिए बताए गए 'पुरुष और महिला' की व्याख्या को 'व्यक्ति' के रूप में कर सकती है, जो कि विवाह को जेन्डर नूट्रल बना देगा। याचिकाकर्ताओं के पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि शादी न केवल गरिमा का सवाल है, बल्कि अधिकारों का एक गुच्छा है जिसे नवतेज सिंह जौहर के फैसले के बाद भी LGBTQ लोगों को जीवन बीमा या चिकित्सा बीमा जैसी सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है।

समाज में समलैंगिक संबंधों की स्वीकृति बढ़ी है

सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह पूछने पर कि हम एक नागरिक संघ की धारणा को कैसे विकसित कर सकते हैं जिसे कानूनी मान्यता मिलती है कहा कि नवतेज जौहर के फैसले के समय और आज के बीच, समाज ने समलैंगिक संबंधों की अधिक स्वीकृति पाई है। यहां तक कि हमारे विश्वविद्यालयों में भी, जहां ग्रामीण क्षेत्रों से लोग आते हैं, स्वीकृति बढ़ रही है।

शादी में पुरुष और महिला के बजाय ‘जीवनसाथी’ कहा जाए 

याचिकाकर्ताओं की दलील दे रहे मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह केवल 1954 के विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों के लिए मांग कर रहे थे कि विवाह को ‘पुरुष और महिला’ के बजाय ‘जीवनसाथी’ के रूप में बताया जाए। उन्होंने ब्लैक डिक्शनरी का उल्लेख किया कि कैसे विवाह की परिभाषा 1968 से बदल गई, जब इसने पुरुष और महिला को हाल ही में ‘दो व्यक्तियों / मनुष्यों के बीच’ बताया।

पुरुष और महिला की कोई पूर्ण अवधारणा नहीं

मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से दलील दे रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “हम सवाल को गलत दिशा दे रहे हैं। यह LGBTQ की सुरक्षा, गोपनीयता या समानता के बारे में नहीं है, बल्कि यह सामाजिक कानूनी स्थिति प्रदान करने का अधिकार के बारे में है और क्या यह न्यायिक कानून द्वारा किया जा सकता है।” जब तुषार मेहता ने कहा, “किसी भी रिश्ते की सामाजिक स्वीकृति कभी भी कानून या फैसले पर निर्भर नहीं होती है। कानूनी रूप से एक बायोलॉजिकल पुरुष और एक बायोलॉजिकल महिला के बीच संबंध रहा है”, तो सीजेआई चंद्रचूड़ ने जवाब दिया कि एक बायोलॉजिकल महिला या पुरुष की धारणा पूर्ण नहीं है और “यह सिर्फ आपके जननांगों का सवाल नहीं है।”

न्यायालय का समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना जरूरी क्यों

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के मद्देनजर मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम एक घोषणा चाहते हैं कि हमें शादी करने का अधिकार है। उस अधिकार को विशेष विवाह अधिनियम के तहत राज्य द्वारा मान्यता दी जाएगी। और यह न्यायालय की घोषणा के बाद राज्य द्वारा विवाह को मान्यता दी जाएगी। अपना तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि यह मांग इसलिए है क्योंकि 377 के फैसले के बाद, आज भी हमारा सड़कों पर हाथ पकड़ कर चलना कलंकित है।

मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।


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