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“दिल्ली हत्याकांड बताती है पुरुषों को प्यार में रीजेक्शन सीखने की है जरूरत”

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उत्तर पश्चिमी दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके में साहिल नाम के एक युवक ने 16 वर्षीय साक्षी की 16 से अधिक बार चाकू से वार कर और फिर पत्थर से कुचलकर हत्या कर दी। हैरानी की बात यह थी कि इस दौरान, पास से गुजरे राहगीरों ने आरोपी को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। दोनों के धर्म को देखते हुए, एक बार फिर मीडिया को हिन्दू - मुस्लिम करने का मौका मिल गया।

बात हिन्दू-मुस्लिम से ऊपर

उसी दिल्ली में जब शाहिल गहलोत नाम के हिन्दू लड़के ने निक्की यादव नाम के हिन्दू लड़की का कत्ल कर दिया था तब तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया में एकदम सन्नाटा था। यह इसी फरवरी की बात है। उत्तराखंड के अंकिता भंडारी को न्याय कब मिलेगा, बीजेपी नेता के बेटे अंकित आर्या पर कथित रूप से हत्या का आरोप है। अफसोस, लोग इन मुद्दों को भी जाति, धर्म व दलगत राजनीति के चश्मे से देखते हैं।

अपराधी सिर्फ अपराधी है

चाहे साहिल खान हो, आफताब या अफताब जैसा साहिल गहलोत या अंकित आर्या, सबको एक नजरिए से देखने की जरूरत है। हर बात में 'ताली एक हाथ से नहीं बजती' वाले एंगल से देखना बंद करें। एक गलत दूसरे गलत को सही नहीं बना देता है। इन अपराधियों के बयानों का अध्ययन किया जाना चाहिए। साहिल ने मीडिया में आई खबरों के अनुसार कथित रूप से कहा था कि उसे अपने किये गए जुर्म का कोई पछतावा नहीं है। साहिल ने बताया कि वारदात के वक्त बहुत गुस्से में था। इसकी वजह यह भी कि कई दिनों से लड़की उसे नजरअंदाज कर रही थी। बताया जा रहा है कि लड़की, साहिल से ब्रेकअप करना चाहती थी। इसलिए उसने साहिल से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। ये बात उसे बर्दाश्‍त नहीं हुई।

लोगों ने अपराध रोकने की कोशिश क्यों नहीं की

ध्यान दें कि जब साहिल कठतीत रूप से चाकू से लड़की पर वार कर रहा था, तो वहाँ से कई लोग आ-जा रहे थे। उनमें से कई कट्टर हिन्दू भी रहे होंगे। हालांकि एक इंसान साहिल को समझाने की कोशिश करते देखा जा सकता है। बाकी सभी लोग मृतक के भांति आ-जा रहे थे। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक गंभीर अपराध उनके आँखों के सामने हो रही है।

वीडियो और सोशल मीडिया का चस्का

कुछ लोग सोशल मीडिया के लिए वीडियो जरूर बना रहे थे। सोशल मीडिया पर रोष प्रकट करने वाले, जरा आँख बंद करके सोचें। वे भी ऐसे अपराधों को नजरअंदाज करके आगे बढ़ जाते हैं। यहाँ तथाकथित 20 वर्षीय अपराधी के हिम्मत से अधिक चिंताजनक समाज का मर जाना है ध्यान दें, आप भी ऐसे अपराधों को नजरअंदाज़ करके आगे बढ़ जाते हैं, तो कहीं आप किसी अपराध का शिकार हो तो कोई मदद की बात नहीं करेगा।

सोशल मीडिया पर अभिजात्य वर्ग का दोगलापन

अंकिता भंडारी और निक्की यादव हत्याकांड को भी तो आप लोगों ने नजरअंदाज़ कर दिया था। पहलवानों ने एक सांसद पर यौन शोषण का आरोप लगाया। यह वही सांसद है जो तथाकथित रूप से कई आपराधिक मामलों में शामिल रहा है, जिनमें हत्या तक के मामले हैं। आप ने इसे भी तो इग्नोर कर दिया। या फिर यूं कहें कि सीधे -सीधे सांसद के पक्ष में खड़े हो गए।

आईपीएल के बीच खबरों से गायब है महत्वपूर्ण घटनाएं

हम लोग अधिकांश घटनाओं को आईपीएल के चक्कर में घर बैठे नजरअंदाज़ कर देते हैं। इसीलिए इन अपराधियों के हौंसले और बुलंद होते जाते हैं। जिस दिन अपराधियों को केवल अपराधी के रूप देखा जाएगा, और सब ओर से उनकी भर्त्सना शुरू होगी, उस दिन से अपराधियों के हौंसले पस्त होने शुरू हो जाएंगे। हाल के दिल्ली हत्याकांड के मामले में, अगर साक्षी के जगह पर कथित रूप से दोषी पाया गया साहिल किसी पुरुष को मार रहा होता, तो संभव था कि राहगीर ऐसे नजरअंदाज नहीं करते।

लोगों की संकीर्ण मानसिकता

लोगों को लगता है कि लड़की की ही गलती रही होगी। आखिर उसने उससे दोस्ती क्यों की। लड़की अकेले क्यों जा रही थी? लकड़ी ने ऐसे कपड़े क्यों पहने थे और न जाने कितने ही ऐसे सवाल। इन सब के कारण लोग बचाने भी नहीं आते हैं। ऊपर से हमारे यहाँ के कानून व पुलिस में भी कमी है। बचाने वालों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। लोग कोर्ट कचहरी से डर के मदद ही नहीं करते।

पुलिस में संवेदनशीलता की भारी कमी है। गवाहों को इस कदर परेशान किया जाता है कि वे परेशान हो जाते हैं। तारीख पर तारीख, न्याय में देरी बहुत बड़ी समस्या है। बाकी हम लोग बात-बात में माँ या बहन या महिलाओं के नाम पर गालियां कहते हैं, सुनते हैं। औरतों को वस्तु से तुल्य बना दिए हैं।

महिलाओं को दोषी करार देने की मानसिकता

कोई भी बात हो, गाली औरतों को ही क्यों दी जाती है? संस्कृति, संस्कार आदि के नामों पर ज्ञान सिर्फ औरतों को ही क्यों दिया जाता है? अगर साहिल को सिखाया गया होता कि 'ना' का मतलब 'ना' होता है, तो शायद ऐसा नहीं हुआ होता। लेकिन हम तो 'लड़के हैं, गलती हो जाती है', ऐसा हमारा समाज ही हमें सिखाता है।

महिलाओं का आत्मनिर्भर न होना समस्या है

शादी के समय कितनी लड़कियों की इच्छा पूछी जाती है? भारतीय समाज में महिलाओं का आत्मनिर्भर ना होना भी एक बहुत बड़ा कारण है। पुलिस स्टेशनों पर भी कम उत्पीड़न होता है क्या? महिला थाने का कॉन्सेप्ट सही था लेकिन सभी महिलाओं की पहुँच महिला थाने तक है ही नहीं। राज्यों व केंद्र के महिला आयोग में सुधार करने की जरूरत है। महिला आयोग सत्ताधारी पार्टी के महिला विंग मात्र बन के रह गयी है। सदस्यों के नियुक्ति के नियमों को और कठोर, पादर्शी व स्पष्ट बनाने की जरूरत है। महिला आयोग आदि अपने उद्देश्यों में कितना कामयाब हो सकी है? थानों में सीसीटीवी कैमरे क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं ?

क्या सीसीटीवी सिर्फ लगाए जाने के लिए हैं

दिल्ली हत्याकांड में कथित रूप से दोषी पाया गया साहिल आराम से लड़की को चाकू मारता रहा और फिर पत्थर से भी मार कर उसकी हत्या कर दी। पर लोग देखते रहे और CCTV में यह रिकॉर्ड होता रहा। क्या CCTV मोनिटरिंग नहीं होती है ? उतने देर में पुलिस वहाँ क्यों नहीं आयी?जो लोग वहाँ आ-जा रहे थे, उन से पूछा जाना चाहिए कि आखिर वे अपराध को रोकने की कोई कोशिश क्यों नहीं किये ?

आखिर लड़कों को ना सुनने की आदत क्यों नहीं है? हमें हमे अपने घर से शुरुआत करनी होगी। खुद में बदलाव लाना होगा और समझना होगा कि महिलाएं भी बोलने, सुनने, देखने वाली इंसान है। उनके भी मानवाधिकार हैं। दहेज प्रथा जैसी प्रथा महिलाओं को दोयम दर्जे का बनाती है। इसलिए ऐसे कुप्रथाओं को जड़ से समाप्त किया जाना चाहिए। 33% महिला आरक्षण लागू करके दहेज प्रथा को समाप्त करने के साथ महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।

गंभीर मामलों में जल्द हो कार्रवाई

ऐसे जघन्य मामलों को जल्द से जल्द सुना जाना चाहिए और अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए। मेरे नजर में ऐसे अपराधियों के लिए फाँसी की सजा होनी चाहिए। ट्रायल कोर्ट हर हाल में 6 महीने के अंदर सुनवाई पूरी कर ले और ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट तक सुनवाई पूरी करने का एक टाइम लिमिट निर्धारित किया जाना चाहिए। 'न्याय में देरी' एक गम्भीर समस्या है। लड़कियों को आत्मरक्षा के गुण सिखाये जाए। खुद के अंदर, घर में, अपने संस्थाओं में, आस-पास से ले करके ऊपर तक सुधार करने की जरूरत है। नहीं तो कभी निकिता भंडारी तो कभी निक्की यादव तो कभी साक्षी जैसे अपराध होते रहेंगे।

धर्म से ऊपर उठे जनता

IPL फाइनल के दौरान रविंद्र जडेजा की पत्नी ने सर पर पल्लू रख के उन से गले मिली तो सब इसकी तारीफ कर रहे हैं। अगर यहीं पर इरफान पठान की पत्नी बुरखा पहन के मिलती तो यही लोग इसकी बुराई करते। जब तक हम लोग सभी चीजों को जाति, धर्म व दलगत राजनीति के हिसाब से देखेंगे; तब तक बलात्कार, यौन शोषण जैसे अपराधों पर रोक लगना मुश्किल है। बिलकिस बानो केस में गुजरात चुनाव के समय कथित दोषियों को मंच पर फूल माला पहना के सम्मानित किया गया था। ये सब देखने के बाद आपराध नहीं बढ़ेगा तो क्या होगा? दिल्ली की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी LG की है, केंद्र सरकार की है। अगर यही कहीं और हुआ होता तो उस राज्य के गृहमंत्री के नाक में दम कर दिया गया होता। लेकिन मजाल है कि मीडिया एलजी या अमित शाह से सवाल कर ले।

यह पूरा मामला हिन्दू - मुस्लिम से अधिक कानून व्यवस्था का है। समाज के फर्जीपन, दिखावटीपन और मरने का है। कोई दिल्ली पुलिस, LG व गृह मंत्री अमित शाह से सवाल क्यों नहीं कर रहा ? अगर यही गैर BJP राज्य में हुआ होता, तो राष्ट्रपति शासन की मांग की जाने लगी होती। कथित रूप से अंकित आर्या ने अंकिता भंडारी की हत्या कर दी पर अब तक एकदम सन्नाटा पसरा है क्योंकि मामला बीजेपी शासित प्रदेश का था।  अपराधी हिन्दू और बीजेपी नेता का बेटा था। और फिर आप सोचते है कि निर्भया कांड के बाद भी रेप, एसिड अटैक, यौन शोषण की घटनाएं क्यों नहीं रुक रही।


धर्म व राजनीति को मिलाना खतरनाक होगा। संविधान का भाग 3 ( मौलिक अधिकार), भाव 4 ( नीति निदेशक तत्व) पढ़े होंगे लेकिन भाग 4 A ( मूल कर्तव्य) क्यों नहीं पढ़े? अंकित आर्या, अफताब, साहिल गहलोत व साहिल खान आदि सभी को जल्द से जल्द सजा मिलना चाहिए। मैं एनकाउंटर व बुलडोजर राज के सख्त खिलाफ हूँ।


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