

यह सवाल अक्सर मुझसे मेरी मां पूछती हैं कि जिस दौर में बच्चे अनेकों धार्मिक स्थानों पर जाते हैं, भक्ति करते हैं व ईश्वर से अपने अच्छे जीवन की कामना करते हैं, उस दौर मैं मुझे नास्तिक क्यों बनना पड़ा? असल में आज के समय में जितनी तेज़ी से लोग वापस अपने धर्मों की ओर जाते जा रहे हैं उतने ही वह इस बात से बे खबर होते जा रहे हैं कि धर्म व धर्म के आदर का मतलब क्या है।
आदमी आखिर नास्तिक है तो है क्यों
आज अगर एक धार्मिक व्यक्ति किसी नास्तिक से बात करेगा, तो वह जरूर ही उसे धार्मिक होने का सुझाव देगा। देना भी चाहिए। लेकिन वह धार्मिक इंसान यह सोचने व समझने का प्रयास कभी नहीं करेगा कि सामने खड़ा यह आदमी आखिर नास्तिक है तो है क्यों? ऐसी क्या घटना हुई थी जिसने इसे एक नास्तिक बनाया? असल में यह नास्तिक शब्द ही आज के युवा के लिए एक बहुत ही गलत समझा जाने वाला शब्द है।
नास्तिक का क्या अर्थ है
आप ही बताएं नास्तिक शब्द सुनते ही आपके मन में क्या आएगा? जरूर ही एक इंसान जो भगवान मे विश्वास ना रखता हो व भगवान को अपना दुश्मन समझता हो। वह आपके लिए नास्तिक हो सकता है, लेकिन क्या यह शब्द इतना ही मूल्य रखता है? नहीं। नास्तिक शब्द का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आज से भगवान का मेरे लिए कोई अस्तित्व नहीं, बल्कि यह शब्द उन गूंगे व बहरे लोगों को रास्ता दिखाता है, जो अपना जीवन भगवान के नाम कर के यह समझते हैं कि अब मेरे जीवन का नियंत्रण सिर्फ भगवान के हाथ में है।
महज विश्वास आपका पेट नहीं भर सकता
विश्वास एक बहुत अच्छी चीज़ है, लेकिन विश्वास आपको रोटी नहीं खिला सकता। जब तक आप उस विश्वास को कायम रख के उस रोटी को अपने कर्मों से कमाते नहीं। आखिर कर्म ही तो एक ऐसी चीज़ हैं जिसके दम पर एक हारा हुआ इंसान भी जीत सकता है। लेकिन आज के ज़माने में यह बात कोई नही समझता। यह समझते हैं उनकी जीत को भी भगवान का आशीर्वाद समझकर टाल दिया जाता है। कभी सोच के देखिए, जिन इन्सानों को भगवान ने बनाया है, वह इंसान क्यों धर्म व धार्मिक ग्रंथों के नाम पर एक दूसरे को मारते हैं? क्या कोई भी धर्म के भगवान ऐसा करने का आदेश देते है? नहीं। धर्मो के नाम पर इंसान तो छोड़िए, जानवरों को भी नहीं छोड़ा जाता। यही कारण है कि इन्सानों की सोच ने उन्हें जानवरों से भी बदतर बना दिया है।
मैं नास्तिक हूं और मंदिर जाता हूं
दूसरी तरफ, एक नास्तिक, जिसको भगवान का दुश्मन बता दिया जाता है, वह मंदिर भी जाए तो बातें शुरू हो जाती हैं। यह समझना बहुत जरूरी है कि अगर मैं नास्तिक हूं तब भी मै मंदिर जाता हूं, लेकिन अपने घर का मंदिर साफ करने के बाद। मेरा घर, जो कि मेरे लिए किसी मंदिर से कम नहीं, उसे साफ करके ही मैं भगवान के मंदिर जाता हूं। गुरुद्वारे में सिर्फ लंगर खाने ही नहीं, लंगर सेवा में भी जाता हूं। क्या यह सब करके में नास्तिक नहीं रहा? हां! मेरी अपनी ये राय है कि हर धर्म व उनके ग्रंथ अपने आप में ही एक बहुत खूबसूरत सच है। लेकिन यह खूबसूरती आज सिर्फ मोबाइल के स्टेटस व वाहनों पर लगे स्टिकर तक ही रह गए हैं। आज लोग अपने वाहनों पर धार्मिक चित्र व स्टिकर तो लगवा लेते हैं लेकिन उसका महत्व ही भूल जाते हैं। महीनों तक उस वाहन को साफ ना करके उस चित्र का भी और अपने धर्मों का भी अनादर करते हैं।
क्या हम सभी धर्मों का आदर करते हैं?
अंत में मैं यहीं कहना चाहूंगा, कि हमारा देश, जिसे एक धर्मनिरपेक्ष देश, सेक्युलर कंट्री कहा जाता है, इस बात का सबसे मजबूत प्रमाण हैं की भारत में, एक हिन्दू अच्छा हिन्दू है, एक मुसलमान अच्छा मुसलमान है। एक सिख अच्छा सिख है, एक ईसाई अच्छा ईसाई है। जो साथ मे ही रहते हुए एक दूसरे के धर्मों का आदर करते रहे। लेकीन क्या ऐसा है? यह सवाल मैं आपके ऊपर छोड़ता हूं। सोचिएगा ज़रूर।
