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“फ्री बस जैसी सेवाएं महिलाओं के लिए आत्मनिर्भर होने का जरिया है”

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A woman in a busA woman in a bus

हमारे घर की साफ सफाई में मदद करने वाली जो दीदी आती हैं वो रोज़ के मुताबित थोड़ा लेट आई , पूछे जाने पर बताई की, आज कोई साथ में आने वाला नहीं था। इसलिए ऑटो रिक्शा से नहीं आ पायी क्योंकि अकेले आने-जाने का पैसा बहुत लग जाता है। बस से भी अकेले का टिकिट लेकर महीने के खर्च का आधा पैसा ऐसे ही चला जाता है। ये तो एक घर-घर जाकर काम करने वाली की कहानी हैं। ऐसी बहुत सी औरते हैं जो काम करते हुए एक जगह से दूसरे जगह जाकर जैसे मालिन का काम , खाना बनाने का काम, अगनबाड़ी में साफ सफाई का का काम करती हैं। सोचिए कितना पैसा कमाती होगी और आने जाने में कितना खर्च होता होगा। ये वो औरतें हैं जिनके घर पर या तो कमाने वाला कोई नहीं होता या उनकी रोज़ी रोटी ठीक से नहीं होती होगी।

महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के प्रयास

इसी संदर्भ में हाल ही में काँग्रेस सरकार द्वारा कर्नाटक राज्य में महिलाओं को बस की मुफ्त सेवा प्रदान की गयी और सुचारु रूप से चालू भी किया गया। सुनकर लगता है कि सरकार मुफ्त में रेवड़ी बाँट रही हैं। पर देश के मौजूदा स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता कि महिलाओं को एक प्रकार से सम्मान दिया गया। अब वो खुल कर कहीं भी जा सकती हैं। कोई रोक टोक नहीं, पैसे खर्च की चिंता नहीं। जो भी दिन के 10 या 12 रुपए खर्च होते थे महीने में 1200 या 2000 कमाने वालों के लिए बहुत है।

फ्री बस सेवा महिलाओं की आज़ादी का जरिया

जब इस तस्वीर को देखा तो ऐसा लगा कि क्यों ऐसा कर रही थी अम्मा। पर समझिए कितना कष्ट होता था इस औरत को जब बस के पैसे बचाने के लिए मीलों दूर पैदल चलती थी। तब जाकर वो कुछ दूर तक के लिए बस का खर्चा दे पाती थी। ऐसा बोलकर उनकी आँखों में आँसू आ गए थे। क्या हम सब चाँद पर पहुँचने में इतने आतुर हैं कि हमारी माताओं के दर्द को समझने के लिए इतना दूर आना पड़ रहा हैं? काश की हम सब उन महिलाओं को जो सक्षम नही हैं टिकट लेने को उनको मुफ्त सेवा दे पाते। राज्य के अंदर रेल सेवा हो या बस सेवा उनको मुफ्त करने से हाशिये पर रह रही महिलाओं के लिए आज़ादी का एक जरिया बैन सकता है। 

कैसे शिक्षा में मदद कर सकता है मुफ़्त यात्रा

मुफ्त यात्रा की सेवा से जो लड़कियों को गाँव से दूर पढ़ने जाना पड़ता हैं, अब उन्हें इस से कुछ राहत होगी। उनकी पढ़ाई से उनके परिवारों पर बढ़ता आर्थिक बोझ कम हो सकेगा। आज के समय में भी पितृसत्तात्मक समाज में लड़कों को दूर जाने से, उन पर पैसे खर्च करने में कोई गलत नहीं समझता। परंतु लड़कियों पर खर्च नहीं किया जाता। औरतें कभी अपने घर पर खर्च, अपने बच्चों पर खर्च करती हैं पर साथ में कैसे घर के खर्च में पैसे की बचत हो, यही सोचती है। खुद पर कभी खर्च नहीं करती। क्या उन औरतों को कर्नाटक सरकार सम्मान देकर उनको जीने का तरीके को थोड़ा सुकून भरा नहीं बनाया है। क्या इससे उनके आत्मसम्मान बढ़ावा नहीं होगा। क्या दूसरे राज्य भी ऐसा नहीं कर सकते?

शिक्षा में आगे बढ़ना, छोटे काम-काज से आत्मनिर्भर बनने की शुरुआत करना, अपना आत्मसम्मान और काम में आगे बढ़ने की राह दिखाता है। ऐसा करना हम सबके लिए एक अलग राह दिखाता है। खुशियां देना सबसे बड़ी बात है और सभी सरकार को ऐसा सीखना चाहिए और अपने राज्य में भी ऐसे कदम उठाने चाहिए। 


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