शाम को दलान में बैठकर जब घर के तमाम लोग चाय पर गप्पे लड़ा रहे होते थे, तो हम चुपचाप पीछे वाले दरवाज़े से निकलकर पप्पू की चाय की टपरी पर भागते-भागते जाते और पुष्पा से मिल लेते थे, कुछ ऐसे ही नज़रें बचाकर वो भी मुझसे मिलने आती थी। वीकेन्ड की हर ढलती शाम हमारी लव स्टोरी के लिए मुसीबतों का पहाड़ लेकर आती थी। पता है क्यों? पड़ोस के मुन्ना चाचा का लड़का, हमारी अम्मी को चुगली कर देता था, “चाची, तोहार...
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